Wednesday, May 21, 2014

सोचा न था

सोचा न था मंजर यूँ बदल जायेंगे
आसमां से ज़मी पर उतर आएँगे,
चलते थे जो फूलों भरी राह पर
पाँव वो लहु-लूहान हो जाएँगे
सोचा न था मंजर यूँ बदल जायेंगे |

महकता था दामन जो इत्र की सुगंध से
दुर्गन्ध में पसीने की बदल जाएँगे
रहते थे जो रौशनी की चकाचौंध में
यूँ अंधेरों में मुंह अपना छुपाएंगे
सोचा न था मंजर यूँ बदल जायेंगे  |

आँचल में छुप-छुप किलकारियां भरते थे जो
अब सीना तान दिखाएँगे
कहा करते थे आने ना देंगे आँसू कभी
वही आँखों में समंदर भर जाएँगे
सोचा न था मंजर यूँ बदल जाएँगे |

दौड़ कर लग जाते थे कभी जो सीने से
मुंह फेर कर अब चले जाएँगे,
भरोसे की चादर ओढ़, चैन से सोते थे बेखबर हम
चादर वो खींच कर ले जाएँगे
सोचा न था मंजर यूँ बदल जाएँगे ||
 

Thursday, May 1, 2014

हे स्त्री !!

 उठो हे स्त्री !
पोंछ लो अपने अश्रु 
कमजोर नही तुम 
जननी हो श्रृष्टि की 
प्रकृति और दुर्गा भी 
काली बन हुंकार भरो,
नाश करो!
उन महिसासुरों का 
गर्भ में मिटाते हैं  
जो आस्तित्व तुम्हारा,
संहार करो उनका जो 
करते हैं दामन तुम्हारा 
तार-तार,
करो प्रहार उन पर 
झोंक देते हैं जो
तुम्हें जिन्दा ही 
दहेज की ज्वाला में,
उठो जागो !
जो अब भी ना जागी 
तो मिटा दी जाओगी और 
सदैव के लिए इतिहास 
बन कर रह जाओगी ||

Tuesday, April 29, 2014

कल्पवास

 
आज कल्पवास के आखरी दिन भी वो रोज की तरह पेड़ के नीचे बैठ चारो तरफ नजरें घुमा-घुमा कर किसी को ढूंड रही है जैसे किसी के आने की प्रतीक्षा हो उसे, पूरा दिन निकल गया शाम होने को है, सूर्य की प्रखर किरणें मद्धम पड़ चुकी हैं, पंक्षी अपने-अपने घोसलों में पहुँच गये हैं, बस् कुछ देर में ही दिन पूरी तरह रात्रि के आँचल में समा जाएगा पर अभी तक वो नही दिखा जिसका बर्षों से वो प्रतीक्षा कर रही है |
वर्षों पहले इसी कुम्भ में कल्पवास के लिए छोड़ गया था ये कह कर की कल्पवास समाप्त होने पर आ के ले जाऊँगा पर आज भी नही आया..शायद अगले कल्पवास में उसे माँ की याद आ जाये..पर तब तक शायद मै ही ना रहूँ कहते हुए उसकी आवाज काँप गई अपनी झुकी हुयी कमर के साथ किसी तरह अपनी लाठी के सहारे चलती हुई रात्रि के अंधेरे में विलीन हो गई |

मीना पाठक

Friday, April 11, 2014

उत्तर दो कान्हा !

सुन कर द्रोपदी की चित्कार
कलेजा धरती का फटा क्यों नहीं
देख उसके आँसुओं की धार
अंगारे आसमां ने उगले क्यों नहीं
चुप क्यों थे विदुर व भीष्म
नेत्रहीन तो घृतराष्ट्र थे
द्रोण ने नेत्र क्यों बंद कर लिए
नजरें क्यों चुरा लिए पाँचों पांडवों ने
कहाँ था अर्जुन का गांडीव
बल कहाँ था महाबली भीम का
क्या कोई वस्तु थी द्रोपदी
जिसे दाँव पर लगा दिया
ये कौन सा धर्म था धर्मराज ?

कहाँ थे कृष्ण,
वो तो थी सखी तुम्हारी
स्पर्श करने से पहले ही
भष्म क्यों नही कर दिया
हाथ बढ़ाने से पहले ही
सुदर्शन क्यों नही चला दिया ?

हे कृष्ण !
प्रतीक्षा क्यों करते रहे ?
तुम तो अन्तर्यामी थे,
सब के साथ तुम भी
मूकदर्शक क्यों बने रहे ?
क्या दोष था यज्ञसेनी का,
मात्र स्त्री होना ही ना ??

एक स्त्री को वस्तुमात्र
क्यों बना दिया मुरलीधर ?
जिसका कोई भी केश खिंच ले,
वस्त्र खिंच ले, लगा दे दाँव
बना दिया क्यूँ
इतना विवश और लाचार
चुप क्यों हो मधुसूदन,
उत्तर दो !
ये प्रश्न मुझको बेध रहे हैं
अंतर्मन को छेद रहे हैं
इस वेदना का निदान क्या 
उत्तर दो कान्हा !! 

शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...