Friday, March 6, 2015

सुन् री सखी



















सुन री सखी फिर फागुन आयो
याद पिया की बहुत रुलायो
इत उत डोलूँ, भेद ना खोलूँ
बैरन नैना भरि-भरि आयो
सुन री सखी फिर ........

जब से गये परदेश पिया जी
भेजे न इक संदेश जिया की
इक-इक पलछिन गिन के बितायो
सुन री सखी फिर ........

ननदी हँसती जिठनी हँसती
दे ताली देवरनियो हँसती
सौतनिया संग पिया भरमायो
सुन री सखी फिर .....

खूब अबीर गुलाल उड़ायें
प्रेम रंग, सब रंग इतराएँ
बिरहा की अगनी ने मोहे जलायो
का पिया ने मोहे, दिया बिसरायो
सुन री सखी फिर ......

खेलूँगीं ना अब मै होरी
रहिहे सदा ये चूनर कोरी
अब हिय अपने श्याम बसायो
सुन री सखी .......
साँचो अब फागुन आयो ।।

मीना पाठक
चित्र -गूगल

Tuesday, January 20, 2015

हे पुरुष !

कैसे खुश होते हो तुम
स्त्री के आँखों में अश्रु ला
उसे असीम पीड़ा दे कर ?
अहिल्या को श्राप दे
पाषाण बनाते हो, फिर
स्पर्श कर तारनहार बन जाते हो,
वैदेही को अग्नि में तपाते हो 
उसी की स्वर्ण प्रतिमा बना
मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हो
फिर क्यूँ ?
उसे निष्कासन का दण्ड सुनाते हो
वृंदा का मान भंग कर  
तुलसी पावन कर देते हो,
हे देव पुरुष !
स्त्री को गिरा कर उठाना
पुजवाना स्वयं को उससे 
तुम्हें खूब भाता है
उस पर व्यथाओं का भार लादना
तुम्हें आता है
और हे स्त्री !
तुम हो कितनी भोली  
हर रूप में छली जाती हो
नाम लूँ किस-किस का
द्रोपदी, शकुंतला
या हो आज की नारी
हर युग में छली जाती हो
बारी-बारी !!

Monday, January 12, 2015

समदर्शी हर ज्योति में तुम हो
















पलकों की मोती में तुम हो
नैनो की ज्योती में तुम हो ।
उर की हर धड़कन में तुम ही
वाणी के स्वर में भी तुम हो ।
बाट जोहती आस लगाए
पथ के हर पंथी में तुम हो ।
मन मन्दिर में छवि तुम्हारी
अधरों के मुस्कान में तुम हो ।
दीप जलाया आशाओं का
समदर्शी, हर ज्योति में तुम हो ।।

Wednesday, December 31, 2014

आने वाले साल का हर दिन हो शुभ !



मुट्ठी से रेत की तरह
फिसल गया ये साल भी
पिछले साल की तरह,
वही तल्खियाँ, रुसवाइयाँ
आरोप, प्रत्यारोप,बिलबिलाते दिन
लिजलिजाती रातें, दर्द, कराह
दे गया सौगात में

सोचा था पिछले साल भी
होगा खुशहाल, बेमिशाल
लाजवाब आने वाला साल
,
भरेगा खुशियों से दामन
महकेगा फूलों से घर आँगन
खुले केशों से बूँदें टपकेंगी
हर कदम मोती सी बिखरेंगी
देगी तुलसी के चौरा में पानी
बन के रहेगी वो राजा की रानी,

हो गया फिर से आत्मा का चीरहरण
केश तो खुले पर द्रोपदी की तरह
कराह, चीख से भर गया घर आँगन
अपमान की ज्वाला से दहकने लगा दामन
भर गया रगों में नफरत का जहर
हाहाकार कर उठा अंतर्मन
याद कर वो बरपा हुआ कहर,

लो आ गया फिर से नया साल
जागी है फिर दिल में आस
लाएगा खुशियाँ अपार
मिटेगा मन से संताप,
दहकाए न कलुषित शब्दों का ताप
दे ये नया साल खुशियों की सौगात,

हो
, माँ शारदे की अनुकम्पा
बोल उठें शब्द बेशुमार
मेघ घनन-घन बरसे
कल-कल सरिता बहे
धरती धनी चूनर ओढ़े 
फिर,
नाच उठे मन मयूर
शब्द झरें बन कर पुष्प
गाये पपीहा मंगल गीत
आने वाले साल का
हर दिन हो शुभ !!!
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                    आप सभी को नव वर्ष की अनंत शुभकामनाएँ !



शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...