Tuesday, January 7, 2014

आप सब का नया साल शुभ हो

मुट्ठी से रेत की तरह
फिसल गया ये साल भी
पिछले साल की तरह,
वही तल्खियाँ, रुसवाइयाँ
आरोप, प्रत्यारोप,बिलबिलाते दिन
लिजलिजाती रातें, दर्द, कराहें
दे गया सौगात में |

सोचा था पिछले साल भी
होगा खुशहाल, बेमिशाल
लाजवाब आने वाला साल
,
भर लूँगी खुशियों से दामन
महकेगा फूलों से घर आँगन
खुले केशों से बूँदें टपकेंगी
दूँगी तुलसी के चौरा में पानी
बन के रहूँगी राजा की रानी |

हो गया फिर से आत्मा का चीरहरण
केश तो खुले पर द्रोपदी की तरह
कराहों, चीखों से भर गया घर आँगन
आपमान की ज्वाला से दहकने लगा दामन
भर गया रगों में नफरत का जहर
हाहाकार कर उठा अंतर्मन, पर
रह गई मन की बात मन में
कह ना सकी किसी से अपनी उलझन |

लो आ गया फिर से नया साल
जागी है फिर से दिल में आस
लाएगा खुशियाँ अपार
मिटेगा मन से संताप
दहकाए न कलुषित शब्दों का ताप
दे ये नया साल खुशियों की सौगात |

हो
, माँ शारदे की अनुकम्पा
बोल उठें शब्द बेशुमार
मेघ घननघन बरसे
कल-कल सरिता बहे
धरती धनी चूनर ओढ़े
फिर,
नाच उठे मन मयूर
शब्द झरें बन कर फूल
गाये पपीहा मंगल गीत
आने वाले साल का
हर दिन हो शुभ !!!

Tuesday, December 17, 2013

चीख !!

हॉस्पिटल से आने के बाद दिया ने आज माँ से आईना माँगा | माँ आँखों में आँसू भर कर बोली ना देख बेटा आईना, देख न सकेगी तू |” पर दिया की जिद के आगे उसकी एक न चली और उसने आईना ला कर धड़कते दिल से दिया के हाथ में थमा दिया और खुद उसके पास बैठ गई | दिया ने भी धड़कते दिल से आईना अपने चेहरे के सामने किया और एक तेज चीख पूरे घर में गूँज गई, माँ की गोद में चेहरा छुपा कर फूट-फूट कर रो पड़ी दिया | माँ ने अपने आँसू पोंछे और उसके सिर पर स्नेह से हाथ फेरते हुए बोली कि मैंने तो पहले ही तुझसे बोला था कि मत देख आईना पर तू ही नही मानी |” माँ का कलेजा भी फटा जा रहा था अपनी बेटी की ये दशा देख कर | 
कितनी खुश थी उस दिन दिया जब वो कोलेज की सबसे सुन्दर लड़की चुनी गई थी | तभी महेश से उसकी दोस्ती हुई | सब कुछ अच्छा चल रहा था बीएसी फाइनल में जब उसकी शादी तय हुई तब उसने ये खुशखबरी महेश को दी, वो एकदम आगबबूला हो गया ये कैसे हो सकता है, प्यार मुझसे और शादी किसी और से ?” ये सुन कर दिया आवाक रह गई | दिया ने उसे बहुत समझाया कि वो दोनों एक अच्छे दोस्त के सिवा कुछ भी नही पर महेश अपनी जिद पर अड़ा रहा | उसने दिया को घमकी दी कि वो उसकी शादी किसी और से नही होने देगा | दिया ने उसकी बातों को कोई महत्व नही दिया और उससे मिलना-जुलना, बात करना सब बंद कर दिया | ठीक सगाई से एक दिन पहले जब वो पार्लर जा रही थी, उसके सामने से एक बाइक निकली और दिया के मुंह से हृदयविदारक चीख निकल गई थी |

Tuesday, December 3, 2013

चलो मिलते हैं वहाँ !!

धरती के उस छोर पर 
धानी चूनर ओढ़ कर   
वसुधा मिलती हैं अनन्त से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!

बन्धन सारे तोड़ कर
लहरों की चादर ओढ़ कर
दरिया मिलता है किनारे से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!

पर्वतों से निकल कर
लम्बी दूरी चल कर
नदियाँ मिलती है सागर से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!

बसंती भोर में
खिले उपवन में
भँवरे फूलों से मिलते हैं जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!

स्वाति नक्षत्र के
वर्षा की इक बूँद से
तृप्त हो चातक मिलता है जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!

पूनम की रात में
चाँदनी विस्तार से
किलोल करती मिलती हैं जहाँ
चलो मिलतें हैं वहाँ!!

जमुना के तट पर
बाँध उमंगो की डोर
मिलती है राधा कृष्ण से जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!

सांसों की लय तोड़ कर
नश्वर काया छोड़ कर
आत्मा परमात्मा से मिलती है जहाँ
चलो मिलते हैं वहाँ !!

*मीना पाठक*

Thursday, November 21, 2013

फरेब

*फरवरी का महीना है, दिन के ग्यारह बज चुके हैं पर अभी तक सुर्य देव के दर्शन नही हुए हैं वातावरण कोहरे से घिरा हुआ है ऐसे मे ठण्ड से कंपकपाती हुई सुमित्रा ने अपना गेट खटखटाया, दो मिनट रुक कर फिर से खटखटाते हुए बोली  बेटा गेट खोलो जल्दी, बहुत ठण्ड है | थोड़ी देर बाद ही गेट खुल गया सामने उसका छोटा बेटा खड़ा था | सुमित्रा फिर से बोली अन्दर से जा कर एक लोटा पानी ले आओ | वो क्या करोगी मम्मी ? बेटे ने सवाल कर दिया |ज्यादा सवाल ना करो, जल्दी से ले कर आओ | सुमित्रा बेटे को डपटते हुए बोली | बेटा भाग कर अन्दर गया और रसोई से लोटे में पानी ले आया | सुमित्रा ने लोटे के पानी से कुल्ली की, हाथ मुंह धोया और गेट के अन्दर आ गयी | जल्दी से नहा कर सारे उतरे हुए कपड़े धो कर छत पर सूखने को डालने के बाद नीचे आ के रजाई दुबक गई रोने की वजह से उसकी आँखों में जलन हो रही थी फिर भी उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े, निकलते क्यों नही आज वो अपनी सबसे प्रिय सखी को विदा कर के आ रही थी | उसे याद आ रहा था जब वो पिछली बार उससे मिलने गयी थी तब उसने कितनी सारी बाते उससे की थी, अपने दिल की सारी भड़ास निकालने के बाद उसने मुझसे कहा  सुमी तेरे बेटे की शादी तय हो गयी ? मैंने कहा   नही अभी कहीं बात नही बनी |
उसने फिर से कहा 
–“अपने बेटे की शादी में मुझे बरात ले चलेगी ना ?
मैंने कहा- 
कैसी बाते करती है बेबी तेरे बिना मै अपने बेटे की बरात ले के जाऊंगी क्या, तुझे बारात भी चलना है और बेटे की शादी में डांस भी करना है |
 तू ना बुलाए तो भी मै आऊँगी तू देख लेना | बोली थी बेबी अच्छा अब तू सो जा, डा० ने तुझे ज्यादा बोलने के लिए मना किया है |
किसी तरह उसे उस दिन सुला कर मै घर आ गयी थी और आज सुबह-सुबह ही ये मनहूस खबर आ गयी कि बेबी इस दुनिया में नही रही |
बेबी  से मेरी दोस्ती करीब २५ साल पुरानी थी | आज भी मुझे याद है जब मै यहाँ नई-नई रहने आई थी तब यहाँ आये दिन किसी न किसी के घर पूजा रखी जाती थी कारण ये था कि यहाँ नये-नये घर बन रहे थे और जो भी रहने के लिए आता अपने घर में पूजा रखता तो उसी में हम दोनों का मिलना होता था | वो मुझे देख कर आकर्षित थी और मै उसे, वो सांवली-सलोनी व बेहद खूबसूरत नाक-नक्श की स्वामिनी थी; हर बात को मजाक बना के हँस देना उसका स्वभाव था | सामने वाले की कोई ना कोई ऐसी कमी निकाल देती थी कि हम दोनों हँसते 
 हँसते लोट - पोट हो जाते थे, मै उसे डांटती थी कि - क्या हर किसी की कमी निकालती रहती है तो उसका जवाब होता तू हँसती हुयी बहुत अच्छी लगती है इसी लिए जब तू साथ होती है तब मैं तुझे हंसाने का कोई बहाना नही छोड़ती,हमेशा मुंह लटकाए रहती है तू |
हम दोनों थे तो बिल्कुल बिपरीत स्वभाव के पर हमारे दिल आपस में जुड़ गये थे | वो हँसमुख और जिंदादिल थी तो मैं गम्भीर और चुप रहने वाली |
धीरे-धीरे हम दोनों की दोस्ती गहराती गयी और हम दोनों एक दूसरे की आदत बन गये थे; अपने दिल की और घर-गृहस्ती की हर बात एक दूसरे से साझा किये बिना हम नही रह पाते थे | घर में हमारी दोस्ती सभी को खटकती थी | जब भी वो मेरे घर आती सभी खुसुर-फुसुर करने लगते कि
हो गयी अब दो तीन घंटे की छुट्टी और सच् में उसके साथ समय कैसे बीत जाता था पता ही नही चलता था | वो जब भी आती मेरे अन्दर ऊर्जा का संचार हो जाता था, वो हँसते-हँसाते मेरे अन्दर नई स्फूर्ती पैदा कर जाती थी; मैंने सपने में भी नही सोचा था कि इतनी ज़िंदा दिल स्त्री ऐसे सदमे से इस दुनिया से विदा हो जायेगी | दर्द से मेरा सिर फटा जा रहा था और आँखों में बेहद जलन | रजाई में मेरा शरीर गर्म हो गया था पता नही कब मुझे नींद लग गयी |
गाड़ी का हार्न सुनके मरी आँख खुल गयी, रजाई से मैंने सिर बाहर निकाला रात के आठ बज चुके थे | मैंने बेटे को हल्के से डांट लगाईं 
मुझे जगा नही सकते थेपापा ने मना किया था बेटे ने जवाब दिया, उन्हें मेरी हालत का अंदाजा था इसी लिए वो बाहर से ही खाना ले कर आये थे | अन्दर आते ही पूछा इन्होने कैसी तबियत है तुम्हारी इनका इतना पूछना था कि फिर से मेरी आँसू गिरने लगे और मैं सिसकने लगी | ये मेरी पीठ थपका कर मेरे आँसू पोंछते हुए बोले इस तरह तो तुम्हारी तबियत खराब हो जाएगी जो होना था वो तो हो गया अपने को संभालो | रो-रो कर अपनी क्या हालत कर ली है तुमने,चेहरा देखो अपना सीसे में| मेरी आँखे रोते रोते सूज गयी थी और आस पास लाल घेरा बन गया था | मुझे इन्होने बिस्तर से उतरने नही दिया जबरजस्ती से चाय पिलाई और थोड़ा सा खाना खिलाया | थोड़ी देर मै यूँ ही बैठी रही फिर सभी अपने - अपने बिस्तर में लेट गये | मेरी आँखों में नींद नही थी | बेबी नही है विश्वास नही हो रहा था जब कि मेरी आँखों के सामने ही उसे सजा संवार के विदा कर दिया गया था .......
आज मुझे उसकी सारी बातें याद आ रही थी | जब उसे पहली बार दिल का दौरा पड़ा था,  मै सुन कर अचम्भे में पड़ गयी थी कि 
बेबी को दिल का दौरा ? ऐसा कैसे हो सकता है वो तो हमेशा खुश रहती है | मैं भागते हुए हस्पताल पहुँची थी | वहाँ जा कर उसे देखा तो उसका चेहरा काला पड़ गया था ऐसा लग रहा था जैसे वर्षों से बीमार हो | मुझे देख कर उसकी आँखों से दो आँसू टपक गये मेरी भी आँखे भीग गई मैंने उसके सिर पर हाथ फेरा उसका हाथ अपने हाथ मे ले कर थोड़ी देर बैठी रही और घर आ गयी थी क्यों कि वहाँ ज्यादा देर बैठने की इजाज़त नही थी, ना वो कुछ बोली थी ना मै कुछ बोल सकी थी | कुछ दिनों बाद मैं उससे मिलने उसके घर गयी थी तब वो कुछ ठीक थी पर अब वो परहेजी खाना, और दवाइयों पर रहने लगी थी | पहले जैसी नही रह गयी थी वो, कमजोर भी हो गयी थी, घर का काम करना अब भारी था उसके लिए तो उसने गाँव से अपनी दूर की एक बहन बुला ली थी कुछ दिन के लिए मै भी निश्चिन्त थी कि बेबी अब बड़े आराम से आराम कर रही है | वो चार बहने थीं और B.A. कर के घर में ही रहती थी पापा किसान थे तो उसे भी यहाँ रहने में कोई परेशानी नही थी| अचानक ही मुझे किसी काम से  अपने बेटे के पास दिल्ली जाना पड़ा | मै एक महीने बाद वापस आई तो दूसरे ही दिन उससे मिलने उसके घर पहुँच गयी देखा वो लेटी हुई थी उसकी बहन ने उसे जगाया "दीदी देखो, सुमी दीदी आयी हैं" और वो अन्दर चली गयी | मुझे देख कर वो थोड़ा खुश हुई मगर फिर से उसका चेहरा मुझे बुझा  बुझा सा लगा | मै बैठ गयी उसके पास और बोली - अब कैसी हो बेबी ?अब तो शायद ही कभी ठीक हो पाऊँ सुमी डबडबाई हुई आँखों से वो कराहते हुए बोली |
ना जाने क्यों मुझे लगा कि ये अपनी बीमारी से ज्यादा किसी और दर्द से पीड़ित है | मैं बोली 
शुभ-शुभ बोलो बेबी, ऐसा क्यों बोलती हो, तुम बहुत जल्दी अच्छी हो जाओगी और हम दोनों फिर से मस्ती करेंगे | वो हल्के से मुस्कुराई और बोली ईश्वर करे ऐसा ही हो और वो फिर से लेट गई | मुझे लगा कि वो मुझसे कुछ छुपा रही है, मैंने पूछा तू मुझसे कुछ छुपा रही है? ऐसा मुझे क्यों लग रहा है, बोल नापहले मुझसे वादा कर कि तू किसी को भी नही बताएगी ये सब बेबी बोली | मैंने कहा  ठीक है तू कहती है तो नही बताऊँगी किसी को मुझे क्या पता था कि उसने मुझसे किस बात को ना बताने का वादा ले लिया है | थोड़ा सा ना-नुकुर के बाद उसने जो भी मुझे बताया, मेरे पांव तले ज़मीन खिसक गयी, सन्न रह गयी मै, दिन मे ही तारे नजर आने लगे मुझे  | ऐसा भी हो सकता है, मैं सोच भी नही सकती थी | भाई साहब तो बहुत अच्छे और गंभीर हैं ऐसे कैसे बहक गये | उसने मुझे बताया ..........................
उस दिन रविवार का दिन था मैने सुबह सारा काम किया सब को नाश्ता दे कर खुद भी नाश्ता किया और अखबार ले कर बैठ गयी पढ़ने के लिए | ऊपर ग्रिल लगना था वो कई दिनों से रखा था, ये उसी को पेंट करने बैठ गये थे | मै इनके पीछे कुर्सी पर बैठ कर अखबार पढ़ने लगी थी | थोड़ी देर बाद ही मुझे लगा कि मेरे दिल के पास से कुछ रेंगता हुआ ऊपर की तरफ़ बढ़ रहा है, और तब मुझे पता ही नही चला कि कब मै कुर्सी से उठ कर अन्दर बेड पर गिर पड़ी | गिरने की आवाज सुन के इन्होने पेंट करते हुए मुझसे पूछा 
 क्या हुआ ?  मेरे मुंह से कोई आवाज नही निकली मैं अपना सीना दबाये हुए जल बिन मछली की तरह तड़पती रही | वो दर्द धीरे-धीरे मेरे कंधे की तरफ़ बढ़ रहा था | इन्होने फिर पूछा क्या हुआ ? मै फिर कुछ ना बोल सकी, तड़पती रही उसी तरह | तीसरी बार भी जब मेरी आवाज नही आयी तब इन्होने पलट कर अन्दर मुझे तड़पते हुए देखा फिर ये सब छोड़ कर भाग कर मेरे पास आये क्या हुआ बेबी, क्या हुआ तुम्हे मेरी आवाज नही निकली मैं पसीने से लतफत थी, मैने हाथ हिला कर हवा करने के लिए इशारा किया ये दौड़ कर हाथ वाला पंखा ले आये और मुझ पर तेजी से हवा करने लगे | मेरा दर्द अब कलाई की तरफ़ बढ़ रहा था और मै अपना कंधा पकड़े बिस्तर पर तड़प रही थी | कलाई के पास पहुँच कर दर्द धीरे-धीरे शांत होने लगा था तब तक लाइट आ गई थी | थोड़ी देर तक मै कंधा पकड़े - पकड़े बैठी रही, जब दर्द पूरी तरह शांत हो गया तब मैं फिर से बाहर आ के अपनी जगह बैठ गयी और ये फिर से पेंट करने लगे | मैं आश्चर्यचकित थी कि ये क्या हुआ मुझे, ये समझ गये थे पर इधर-उधर की बातों से मुझे बहला रहे थे | इतने मे ही गेट खटका, मैंने उठ कर दरवाजा खोला, मुझे अजीब सी कमजोरी महसूस हुई मै आ के फिर से धम्म से कुर्सी पर बैठ गई | मेरे पड़ोस के ही एक लोग मिलने आये थे मेरी बगल वाली कुर्सी पर वो बैठ गये | मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़े क्या बात है भाभी जी ? आप बीमार थी क्या ? तब मैंने उनको सारी बात बताई और ये भी बताया की अब मुझे कोई दर्द नही है पर कमजोरी महसूस हो रही है | उन्होंने कहा आप का चेहरा ऐसा लग रहा है जैसे आप कई दिनों से बीमार हैं इसी लिए मैंने पूछा, दर्द नही है  पर आप डा० को जरूर दिखा दीजियेगा इस दर्द को हल्के मे मत लीजिएगा | सलाह दे कर वो चले गये पर ये मुझे डा० के पास नही ले गये |
अब मुझे कभी कभी सीने मे कुछ दर्द सा महसूस होता था और जब भी दर्द होता था मैं बिस्तर पकड़ लेती थी | ये कभी गैस का दर्द कह कर तो कभी बहुत सोचती हो ये कह कर टाल देते थे | धीरे-धीरे पन्द्रह दिन बीत गये फिर से वही पड़ोसी मुझे देखने आये | मेरी हालत देख कर वो इन पर नाराज हुए 
क्या भाई साहब आप ने अभी तक भाभी जी को डा० को नही दिखाया वो एन्जाइना  भी हो सकता है इतनी लापरवाही ठीक नही, आप तुरंत डा० के पास इन्हें ले कर जाइये | अगले दिन ये मुझे हृदय रोग संस्थान ले गये वहाँ मेरा चेकअप हुआ और डा० ने बताया कि मुझे दिल की बीमारी है अगर ठीक से इलाज नही हुआ तो मैं कुछ दिन की मेहमान थी ये सुन के मेरे पाँव तले ज़मीन खिसक गयी मैं बाहर आ के रोने लगी, अभी तो मेरी सारी गृहस्ती अधूरी थी, मेरा घर अधूरा था, मेरी सारी जिम्मेदारियां यूँ ही पड़ी थी मेरी आँखों के सामने अन्धेरा छा गया था | मै कुछ दिन हास्पिटल मे रह कर घर आ गयी थी और अब मैं अपने शरीर से लाचार हूँ कुछ भी नही कर सकती कमजोरी की वजह से, इसी लिए मुझे इस लड़की को बुलाना पड़ा पर आज कल कोई भी अपना नही, कह कर बेबी ने एक लम्बी सांस ली और मुझसे पानी का इशारा किया मैंने उठ कर पानी का गिलास उसको पकड़ा दिया पानी पी कर फिर से उसने बताना शुरू किया | मुझे भी सब जानने की उत्सुकता थी सो मैं भी बैठ के सुनने लगी जब की शाम हो चली थी घर आने को देर हो रही थी पर उसकी बात बीच मे ही छोड़ कर मैं कैसे आ सकती थी |
उसने फिर से कहना शुरू किया .................................
कुछ दिनों से मैं कुछ अजीब सा महसूस कर रही हूँ सुमी मैंने पूछा - क्या ? वो बोली इनमे (पति) और अन्दर की तरफ़ इशारा करते हुए इसमें  कुछ चल रहा है |
मैं बोली 
 तेरा दिमाग खराब हो गया है, पगला गयी है तू, क्या ऊट-पटांग सोचती रहती है, उम्र देखी है दोनों की, चुप कर....... आगे कुछ भी मत बोलना |
वो बेबस सी रोने लगी मैंने उसे चुप कराया | अचानक से ऐसी बात सुन के मुझे गुस्सा लग गयी थी और मैंने उसे डांट दिया था, अब मुझे अपनी गलती का एहसास हो रहा था | मैंने बड़े प्यार से पूछा उससे, 
ऐसा तू कैसे सोच सकती है, बता मुझे क्या बात है | मुझे भी लगा की आज तक उसने अपने पति के बारे मे ऐसा कुछ भी नही कहा था आज क्या हो गया | उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली सुमी ये सच् है, मैंने भी ये बात तुझसे यूँ ही नही बोल दी, अपनी आँखों से सब कुछ देखा मैंने | ये दोनों मिल कर मेरा कितना ध्यान रखते हैं; ये सोच कर मै मन ही मन कितना खुश होती थी पर कारण कुछ और ही है | कुछ दिन पहले की बात है मुझे नींद की दवा देने के बाद इन्होने उसे दूसरे कमरे मे आने का इशारा किया, मै अध्बेहोशी मे थी होश आने पर मुझे ये बात याद आई, मैंने सोचा ये मेरा भ्रम है पर मेरे दिल मे शक का कीड़ा काट गया| उस दिन से मै इन दोनों के हाव-भाव पर नजर रख रही हूँ पर ये लोग मुझे दवा दे कर सुला देते हैं | एक दिन मुझसे रहा नही गया तो मै इनका हाथ पकड़ के माता रानी की फोटो के पास ले गयी और अपने सिर पर इनका हाथ रख कर पूछा मैंने कि सच् बताओ तुम दोनों मे क्या चल रहा है, अगर तुमने झूठ बोला तो मुझे दुबारा दिल का दौरा पड़े और मै मर जाऊँ, तब इन्होने बड़े प्यार से माँ के सामने मेरी कसम खा के मुझे विश्वास दिलाया था कि ये सब मेरा वहम है ऐसा कुछ भी नही है | मैंने भरोसा कर लिया पर दिल मे कहीं कुछ चुभ रहा था |अभी तीन-चार  दिन पहले की बात है मैंने सोचा आज इन दोनों की सच्चाई जान के रहूँगी उस दिन रात को मुझे दवा दी गयी मैंने सिर दर्द का बहाना कर के कहा कि "रख दो अभी थोड़ी देर मे खा लूँगी |" मैंने वो दवा छुपा दी और सोने का नाटक करने लगी | वो मेरे पास सोती है और ये दूसरे कमरे मे | वो चुप हो गई, शायद बोलते-बोलते थक गई थी | मै सांस रोके उसकी बातें ध्यान से सुन रही थी | जैसे-जैसे वो आगे बताती जा रही थी मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा था | मैंने पूछा फिर क्या हुआ ?
वो बोली 
  करीब १२ बजे रात को मेरे कमरे का पर्दा हटा मैंने जरा सी आँख खोल के देखा यही थे | अन्दर आ कर लाइट ऑन कर के इन्होने मुझे देखा मैं सो रही हूँ कि नही मुझे चादर ओढ़ाया और जब इन्हें विश्वास हो गया कि मैं सो रही हूँ तब ये उसका हाथ पकड़ के दूसरे कमरे मे ले गये | मैं गुस्से और अपमान से थर-थर काँप रही थी पर इतनी हिम्मत नही हुई मेरी कि मै उठ कर दूसरे कमरे मे जा कर देखूँ इन दोनों को | इन दोनों की हँसने की आवाज मेरे कानो मे गरम सीसे की तरह पड़ रही थी | मुझे इनकी झूठी कसम भी याद आ रही थी जो इन्होने मेरे सिर पर हाथ रख के माँ के सामने खाई थी | गुस्से और कमजोरी के कारण मैं बिना दवा के ही बेहोश हो गयी | सुबह आँख खुली तो लगा कि कोई बुरा सपना देख लिया है मैंने | अपनी आखों पर विश्वास नही हो रहा था सुमी|” और वो सिसक पड़ी |
मैं उसके सिर पर हाथ फेरने लगी, मेरे मुंह से एक शब्द भी नही निकला मैं सोचने लगी भाई साहब करीब ४५ के होंगे पर देखने मे वो ३५ के ऊपर नही लगते हैं और ये लड़की भी तो २८ से कम की नही है तो क्या जो बेबी कह रही है वो सब ................
मेरा दिमाग चकरा गया | वो अब भी सिसक रही थी, मैंने कहा 
उसे भेज क्यों नही देती यहाँ से और किसी को बताती क्यों नही ये सब बात |
जब मुझे ही विश्वास नही हो रहा इस बात पर तो कोई भी विश्वास नही करेगा मुझ पर, सब मुझे झूठा साबित कर देंगे और इसे अगर भेज दूँ तो घर कौन सम्भालेगा | मैं बिस्तर पर हूँ, इनकी नौकरी है, बेटे का स्कूल है सब कौन देखेगा | अब तो मैं खुद को तसल्ली दे रही हूँ कि अगर मैं मर गयी तो कम से कम ये मेरा घर तो सम्भाल ही लेगी इसी लिए अब मैंने इन दोनों पर नजर रखना भी बंद कर दिया है, माँ के हवाले कर दिया है सब कुछ, जैसी उसकी मर्जी | बोल कर बेबी ने मेरी तरफ पीठ कर ली | मैं समझ गयी कि अब वो कुछ नही बोलेगी |
थोड़ी देर मैं वहीं बैठ कर उसके बालों मे उंगुली करती रही और सोचती रही कि 
 कितना हँसता खेलता परिवार था बेबी का ना जाने किसकी नजर लग गयी | मैं क्या करूँ उसके लिए, किसी और को ये सब बताना भी उचित नही था जब बेबी ही नही बता रही थी तो मैं कैसे बताती | इसने तो परिस्थितियों के हवाले कर दिया है खुद को मैं क्या करूँ इसके लिए | मै सोच ही रही थी कि इतने मे बाइक रूकने की आवाज आई | मैं समझ गयी कि भाई साहब आ गये मै नफरत से भर गयी, मैंने बेबी के बालों से अपना हाथ हटाया और चुपचाप उठ के निकल गयी उसके घर से, बेबी भी शायद सो गयी थी | एक तो दिल की बिमारी ऊपर से दिल पर इतना बड़ा बोझ ले कर वो कब तक ज़िंदा रहेगी | यही सब सोचते हुए मैं भारी कदमों से अपने घर आ गयी थी |
इस बात को करीब १० दिन हो गये थे | इधर ठण्ड बहुत पड़ रही थी जाड़ों मे दिन छोटे और काम ज्यादा हो जाता है इसी वजह से इधर मैं बेबी को देखने नही जा पाई थी और आज सुबह-सुबह ही मेरी एक दूसरी फ्रेंड का फोन आ गया उसने बताया कि 
कल रात बेबी को अटैक पड़ा और हस्पताल ले जाते हुए रास्ते मे ही उसके प्राण निकल गये |
मैं उसी समय उठ कर उसके घर भागती चली गयी | वहाँ जा कर मैंने देखा कि वो ज़मीन पर शांत लेटी है कोई हलचल नही, सभी दुःख - दर्द  से छुटकारा मिल गया था उसे | मैं उसका हाथ पकड़ के फूट-फूट कर रो पड़ी | मेरे दूसरी सखियों ने मुझे सम्भाला फिर उसे नहला धुला के लाल रंग की साड़ी पहनाई गई, उसका पूरा श्रृंगार किया गया | उसका चश्मा ला कर उसे पहना दिया गया फिर भाई साहब को पकड़ कर लाया गया उन्होंने उसकी मांग भरी मुझे लगा की उनका मुंह नोंच लूँ पर अपने गुस्से पर काबू रखा मैंने | उनकी अच्छी खासी छवि थी समाज मे कोई भी मुझपे विश्वास नही करता | बेबी की मांग भरने के बाद वो भी उसके चेहरे पर अपना चेहरा रख के फूट फूट कर रो पड़े थे वहाँ उपस्थित सभी लोगों की आँखों मे आँसू थे |
इतने दिनों की बीमार बेबी आज कितनी सुन्दर लग रही थी, लग ही नही रहा था कि वो बीमार थी , ऐसा लग रहा था कि तैयार हो के सो गयी है बेबी | फिर उसे लाल चुनरी ओढा दी गयी सिर से और वो पति के कंधे पर चढ़ के विदा हो गयी इस दुनिया से | अपने साथ अपने पति की बेवफाई भी ले गयी थी, समाज मे उसका सम्मान बचा गयी थी बेबी पर खुद उसकी बेवफाई का दर्द सह नही पायी और विदा हो गयी इस दुनिया से |
मेरी हिचकियों की आवाज से ये जाग गये थे | मेरे पास आ कर बोले 
तुम सोयी नही ? कब तक रोती रहोगी संभालो खुद को, अब तुम्हारी सखी वापस तो नही आ सकती, हिम्मत से काम लो तुम्हारी तबियत खराब हो गई तो क्या होगा | इन्होने समझा बुझा के मुझे चुप कराया और रजाई ओढा के सुला दिया |
समय बीतने लगा, जब भी बेबी की याद आती दिल दर्द से भर जाता और आँखों से आँसू निकल पड़ता पर कर क्या सकती थी मैं, ईश्वर के आगे किसकी चलती है |  धीरे 
 धीरे समय बीतता रहा और साल निकल गया |
आज फ़रवरी की वही तारीख थी जब बेबी इस दुनिया को छोड़ गयी थी | आज सुबह से ही मेरे आँसू नही रुक रहे थे | बेबी के बाद मैंने कभी भी उसके घर का रुख नही किया था एक तो बेबी के बिना मैं उस घर की कल्पना भी नही कर सकती थी दूसरा मुझे उसके पति से नफरत हो गयी थी पर आज तक मैंने वो बात किसी को भी नही बताई थी, वादा जो ले लिया था बेबी ने | घर का सारा काम निपटा कर मैं अपनी दूसरी सखी, जो उसी के मुहल्ले मे रहती थी उसके घर के लिए निकल पड़ी | वो भी उदास थी हम दोनों थोड़ी देर बेबी को याद कर के आँसू बहते रहे फिर मैंने ही उससे पूछा 
भाई साहब (बेबी के पति) आज कल कहाँ हैं | उसने आँसू पोंछते हुए आश्चर्य से कहा अरे !! तुझे नही पता क्या ? मै चौंक कर बोली  नही तो ...... क्यों क्या हुआ ?
अभी पिछले महीने ही तो मंदिर मे उनकी शादी कराई गयी है, बेचारे कितना रो रहे थे, बिल्कुल भी तैयार नही थे शादी के लिए पर सभी रिश्तेदारों ने समझा बुझा के  शादी कराई उनकी | लड़की भी तो बेबी की बहन लगती थी उसके बेटे को अपने बेटे की तरह रखती है, बेबी की गृहस्ती अच्छे से सम्भाल रखी है उसने | अच्छा ही हुआ नही तो अभी भाई साहब की उम्र ही कितनी थी आगे जा कर कही कुछ ऊँच  नीच हो जाता भाई साहब से तो बेबी का घर बिगड़ जाता उससे तो अच्छा हुआ कि सबने कह सुन के उनकी शादी करा दी |
वो बेले जा रही थी और मैं सोच रही थी कि 
कितना बड़ा फरेबी है बेबी का पति उसके इसी फरेब की वजह से बेबी इस दुनिया से असमय ही चली गयी और ये कितना शरीफ़ और सज्जन बन के बैठा है | मेरा मन खराब हो गया ये सब सुन कर | मैं उसके घर से निकल पड़ी और मन ही मन निश्चय किया कि अब कभी वो बेबी के मुहल्ले मे भी कदम नही रखेगी, बेबी उसके दिल में है और हमेशा रहेगी |   


मीना पाठक
चित्र-गूगल     
  


  

Saturday, November 2, 2013

इस दीपावली एक संकल्प लें

समाज की अति व्यस्तता में मगन हम आनंद का अनुभव करने के लिए विशेष अवसरों की खोज करतें हैं | त्यौहार उन विशेष अवसरों में से एक है | ये हमारे जीवन में नयापन लाते हैं, आनन्द और उल्लास पैदा करते हैं | हमारे त्योहारों में दीपावली का विशेष स्थान है | दीपावली का साधारण अर्थ दीपों की पंक्ति का उत्सव है और दीपक का प्रकाश ज्ञान और उल्लास का प्रतीक है |
दीपावली कब और क्यों मनाया जाता है ये तो हम सभी जानते हैं | इसके बारे में अनेक सांस्कृतिक,ऐतिहासिक एवं धार्मिक परम्पराएं और कितनी कहानियां प्रचलित हैं ये भी हम सब जानते हैं | इस दीपावली पर मै किसी और तरफ़ आप सभी का ध्यान आकर्षित करना चाहती हूँ |
दीपावली खुशियों का त्यौहार, दीपों का त्यौहार और सबसे बढ़ कर लक्ष्मी के स्वागत का त्यौहार है | घर-घर में साफ़ सफाई हो रही है | घर का हर कोना साफ़ किया जा रहा है, दीवारों को चमकाया जा रहा है लक्ष्मी के स्वागत के लिए | पर क्या अपना मन भी इसी तरह साफ़ किया जा रहा है या साफ़ किया जा सकता है ? अगर ऐसा हो जाए तो लक्ष्मी सदैव के लिए ही घर में रुक जायें | घर की सफाई से ज्यादा जरूरी अपने हृदय रुपी घर की सफाई है जिसकी दीवारें घर की लक्ष्मी के लिए मान,सम्मान और प्रेम की भावना से रंगी हों और उसकी मुस्कुराती हुई तस्वीर हर दीवार पर टंगी हो ऐसे घर में तो लक्ष्मी के साथ नारायण भी वास करना चाहेंगें और जहाँ नारायण का वास हो वहाँ से लक्ष्मी भला कहाँ जा सकती हैं | इसके विपरीत जिस घर में गृहलक्ष्मी आँसू पोछती रहती है, घुटती रहती है उस घर को लाख साफ़ करो पर लक्ष्मी वहाँ से दूर ही रहती हैं | लक्ष्मी मिट्टी की मूर्ती में वास नही करतीं वो वास करती है जीती जागती गृहलक्ष्मी में जिसका एक बार स्वागत कर कर के आप सैकड़ों बार उसकी आत्मा के साथ बलात्कार करते हो | जिस घर में स्त्री का सम्मान नही होता वहाँ दलिद्रता का वास होता है | नाना विधि से मूर्ती के सामने फल,फूल और मिठाइयाँ अर्पित करने से लक्ष्मी प्रशन्न
नहीं होतीं हैं | अपना अंतर्मन निर्मल हो और उसमे स्त्री के प्रति सम्मान की भावना हो तो माँ लक्ष्मी सहित सभी देव प्रशन्न होते हैं | इस दीपावली लक्ष्मी पूजन के समय शपथ लें की अपनी गृहलक्ष्मी को सम्मान देंगे, और सभी स्त्रियों के प्रति सादर भाव रखेंगे. कन्या भ्रूणहत्या नही होने देंगे  तभी आप की, हमारी और सभी की दीपावली मंगलमय होगी | जहाँ स्त्री का सम्मान होता है वहीं लक्ष्मी का वास होता है | इसी लिए कहा गया है कि -- 

                   यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते,रमन्ते तत्र देवता: ||

आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
सादर

Saturday, October 12, 2013

परायाधन (लघुकथा)

रमाकांत को पचास वर्ष की आयु में सात पुत्रियों के बाद पुत्र रत्न की प्राप्ती हुयी थी | आज बेटे की छठी बड़े धूमधाम से मनाई जा रही थी | मित्रों और रिश्तेदारों से घर भरा हुआ था कहीं तिल रखने की भी जगाह नही थी घर में | महिलाएँ बधाई गीत गा रहीं थीं | रमाकांत सपत्नी खुशी से फूले नही समा रहे थे | बेटियाँ चुपचाप ये सब देख रहीं थीं | सबसे छोटी बेटी जो मात्र तीन वर्ष की थी अपनी सबसे बड़ी बहन की गोद में बैठी थी | सभी बहने देख रहीं थी कि कैसे सभी उसके नन्हें से भाई को गोद में ले कर स्नेह दिखा रहे थे | माँ पापा भी खुश थे | अचानक ही एक बहन बोली दीदी हमारे जन्म पर भी ऐसे ही खुशी मनाई गई होगी ना ? बड़ी बहन उसके सिर पर प्रेम से हाथ फेरते हुए बोली ना रे दादी कहती है की बाबू (नन्हा भाई) से ही इस घर का वंश चलेगा, हम सब अपने घर का वंश चलाएँगी |
तो क्या ये हमारा घर नही है ? छोटी बहन ने उत्सुकता से पूछा |
दादी कहती है कि हम सब परायाधन हैं, ये हमारा अपना घर नही है | छोटी बहन उदास हो कर अपनी दादी को देखने लगती है जो पोते की बलईयाँ लेते नही थक रही है |

मीना पाठक

चित्र -- गूगल  

Friday, October 11, 2013

माँ तुम हो कितनी महान




माँ!
गहरी सागर सी
ऊँची अनन्त सी
घुली पवन में
सुगंध सी
माँ!
हृदय तुम्हारा
कोमल फूलों सा
मिश्री सी वाणीं
लोरी, परियों की कहानी
माँ!
सुन्दर इतनी कि
अप्सराएँ शर्माएँ
आँचल में तुम्हारे
सागर ममता का
लहराये

महानता में ईश्वर भी
पीछे रह जाए
माँ!
स्पर्श में तुम्हारे
मिलता असीम सुख
हृदय से लग के
मिटता संताप, दुःख
माँ!
तुम मेरी शक्ति
आत्मविश्वास,
श्रोत प्रेरणा की
मेरी पथप्रदर्शक
माँ!
तुम हो मेरे लिए
शक्ति का वरदान
चरणों में तुम्हारे
बारम्बार प्रणाम
तुम ही तो हो
मेरी भगवान!
माँ!
तुम हो कितनी महान ||

शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...