Monday, September 15, 2014

एक रचनाकार की मौत



जब से कामिनी को लिखने का शौक चढ़ा वो हमेशा कुछ ना कुछ सोचती रहती हर कहीं उसे कोई कविता या कहानी नजर आने लगी थी | अकेली हो या कोई काम कर रही हो उसका दिमाग कुछ ना कुछ ताने बाने बुनता रहता | रसोई में भी कलम छुपा कर साथ रखती | जब भी कुछ मन में आता वो किसी भी रद्दी कागज पर लिख लिया करती फिर काम खत्म कर के अपने लेपटॉप पर लिखती | इसका उसे लाभ भी हुआ उसकी कलम ने कई कविताएँ और कहानियाँ उगलीं जो पसन्द की गयीं और पत्रिकाओं में भी छपी | धीरे-धीरे वो अपनी पहचान बना रही थी | पर ये सब उसके पति को बिल्कुल पसन्द नही था | यूँ उसका खोये रहना उसके पति को जरा भी नही भाता था | पति को लग रहा था कि वो उसके हिस्से का समय अपने शौक पूरे करने में लगा रही है | वो हर बार उसे उलाहने देते कि
कहाँ खोई रहती हो ? क्या सोचती रहती हो ? किसके बारे में सोचती हो ? कामिनी हर बार कुछ ना कुछ बहाना बना देती |
कामिनी का लिखना और छपना उन्हें तनिक भी नहीं सुहा रहा था | घर का माहौल दिन पर दिन बिगड़ रहा था पर कामिनी अपनी कलम के बिना अब नही रह सकती थी | उसका कहना था कि वो सभी जिम्मेदारियों को निभाते हुए लिखती है न कि अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर पर उसके पति को मंजूर नही था वो किसी भी साम-दाम-दण्ड-भेद से उसे आगे बढ़ने से रोकना चाहता था वैसे तो कई बार कामिनी ने अपनी कविताएं और कहानियाँ पति को पढ़वा कर पति से थोड़ी वाहवाही लूटनी चाही पर हर बार उसे
अभी समय नही है कह कर टाल दिया जाता था |
उस दिन जब वो खाना ले कर पति के पास गई तो गोली की तरह एक प्रश्न दाग दिया गया
ये राकेश कौन है ?
कौन राकेश वो चौंक कर बोली |
वही जो तुम्हारी प्रेम कहानी का नायक है, जरूर उससे तुम्हारा शादी से पहले कोई संबंध था जिसको तुमने कहानी का रूप दे दिया है | जहर उगलते हुए उसके पति ने कहा |
कामिनी के पाँव तले जमीन खिसक गई वो कहानी तो मात्र कल्पना थी | उसके पति उससे ऐसा प्रश्न करेंगे ? उसने तो सपने में भी नही सोचा था, वो क्रोध और अपमान से थर-थर काँपने लगी | अपने कमरे में जा कर फूट-फूट कर रो पड़ी | जिसके साथ जीवन का एक बड़ा हिस्सा जिया हो वही आज ऐसा ओछा प्रश्न करेगें ...??
आँसूओं के सैलाब ने सारे शब्दों को बहा कर समंदर में डुबो दिया..वो निराशा से घिर गई उसे लगा अब जीवन में कुछ नही रखा है ..वो ये सब किस लिए कर रही है... उसे खुद के लिए जीने का क्या हक है..वो तो रोटी और कपड़े के बदले बिक चुकी है..वो अपनी इच्छाओं का गला घोंट देगी...अब कभी नही लिखेगी वो ...उसने लैपटॉप ऑन किया और अपनी सारी कहानियाँ और कविताएँ डीलीट कर दी..जिसमे उसकी आत्मा बसती थी..जिनको हर समय वो जीती थी...जो उसकी साँसों में थी...उसकी धड़कन थीं...जिसके बिना वो जीवित नही रह सकती थी.. हाँ...आज अपनी रचनाओं के साथ वो भी मर गई थी..एक रचनाकार की मौत हो गई थी...|



मीना पाठक

 

Thursday, August 14, 2014

स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ

कहने को तो हम १५ अगस्त १९४७ को आजाद हो चुके हैं | हम बड़े धूम धाम से ये दिन मानते हैं इस दिन हम सभी देशभक्त वीर सुपुतों को याद करते हैं |
कहते हैं जिस शक्तिशाली साम्राज्य का सूरज कभी नही डूबता था वो निहत्थे भारतीयों के सामने झुक गये और १५ अगस्त १९५७ के दिन गुलामी की काली  रात समाप्त हुई और हमें आजादी मिली |
सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद ने क्रांति की आग फैलाई और अपने प्राणों की आहुति दी। तत्पश्चात सरदार वल्लभभाई पटेल, गांधीजी, सत्य, अहिंसा और बिना हथियारों की लड़ाई लड़ी | सत्याग्रह आंदोलन किए, लाठियां खाईं, कई बार जेल गए और अंग्रेजों को हमारा देश छोड़कर जाने पर मजबूर कर दिया | इस दिन इन सब को हम श्रद्धांजलि देते हैं, इनका आभार प्रकट करते हैं और अपने कर्तव्यों से इति श्री कर लेते हैं फिर वर्ष भर इनकी मूर्तियों पर कौवे बैठें या चील हमें क्या ? पर जिस भारत के लिए इन्होंने अपने प्राणों की बाजी लगायी क्या हम वो भारत उन्हें दे पाए हैं ?
आज जिस कदर देश में भ्रष्टाचार फैला है, अपने ही अपने देश को लूट कर अपनी तिजोरियां भरने में लगे हैं, विदेशी बैंकों में उनके खजाने भरते जा रहे हैं, गरीब और गरीब और अमीर और अमीर होता जा रहा है | अमीरी-गरीबी की खायी बढ़ती ही जा रही है, क्या इसे कभी पाटा जा सकता है ? स्त्रियों की सुरक्षा हो या कन्या भ्रूण हत्या या आये दिन उन पर अनेकों तरह से किये जा रहे जुल्मों को आज तक खत्म किया जा सका है ? अंग्रेज तो विदेशी थे, पराये थे इस लिए हम पर जुल्म करते थे आज तो हम आजाद हैं और सब अपने, फिर ये जुल्म क्यूँ ? स्त्रियों पर इतने अत्याचार होते हैं, उनकी हत्या से ले कर बलात्कार तक पर जिन्हें अपराधियों को दण्ड दिलाना है वही लीपा पोती कर उन्हें बचा ले जाते हैं | यही आजादी है ?
 आये दिन साम्प्रदायिक दंगे-फसाद....इससे राजनेताओं को तो लाभ होता है पर आम जनता सजा भुगतती है | इसका जिम्मेदार कौन हैं ? और भी बहुत सी समस्याएं हैं किस-किस का जिक्र करूँ |

युवक देश की रीढ़ की हड्डी के समान है | उन्हें देश का गौरव बनाए रखने के लिए तथा इसे संपन्न एवं शक्तिशाली बनाने में अपना योगदान देना चाहिए | राष्ट्र की उन्नति के लिए यह आवश्यक है कि वो सांप्रदायिकता के विष से सर्वथा दूर रहें |
घूस, जमाखोरी, कालाबाजारी को देश से समाप्त करें | भारत के नागरिक होने के नाते स्वतंत्रता का न तो स्वयं दुरुपयोग करें और न दूसरों को करने दें| एकता की भावना से रहें और अलगाव, आंतरिक कलह से बचें |
हमारे लिए स्वतंत्रता दिवस का बड़ा महत्व है | हमें अच्‍छे कार्य करना है और देश को आगे बढ़ाना है |
दुःख की बात है कि इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी भरत अपने सपने को साकार नही कर सका है इसका कारण वैयक्तिक स्वार्थ कहा जा सकता है या दलबंदी भी एक कारण हो सकता है | एक बात और सरकार के साथ नागरिकों को भी देश के प्रति अपने कर्तव्यों को याद रखना होगा |


आईये ये संकल्प लें कि जिन शहीदों के प्रति श्रद्धा से मस्तक अपने आप ही झुक जाता है जिन्होंने स्वतंत्रता के यज्ञ में अपने प्राणों की आहु‍ति दे कर हमें स्वतंत्रता दिलाई हम उस स्वतंत्रता की रक्षा करेंगे | देश का नाम विश्व में रोशन हो, ऐसा कार्य करेंगें, देश की प्रगति के साधक बनेगें न‍ कि बाधक |
अमर शहीदों को नमन
जय हिन्द
||सभी देशवासियों को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ ||

मीना पाठक

Sunday, August 10, 2014

पापा बिन !!

नित बैठी रहती हूँ उदास
हर पल आती पापा की याद
सावन में सखियाँ जब
ले कर बायना आती हैं
नैहर की चीजें दिखा-दिखा
इतराती हैं,
 तब भर आता है दिल मेरा
पापा की कमी रुलाती है ।
कहती हैं जब, वो सब सखियाँ
पापा की भर आयीं अंखिया ।
मेरे बालों को सहलाया था
माथा चूम दुलराया था ।
सुनती हूँ जब उनकी बतिया
व्यकुल हो गयी मेरी निदिया ।
मन अधीर हो जाता है
पापा को बहुत बुलाता है
पर खुश देख सखी को
हल्का करतीं हूँ मन को
सज जाती है होठो पर
यादों की पीर
नैनो  से आज फिर छलक आयी
बहती सी नीर
जीवन का रंग कितना
बदल जाता है ।
पापा बिन सावन का
इक तीज-त्यौहार न भाता है ||

Thursday, August 7, 2014

भाई-बहन के प्यार का त्यौहार है रक्षाबंधन


सावन (श्रावण) उत्सवों का माह है और इसी श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। ये भाई-बहनों के प्रेम को समर्पित त्यौहार है इस दिन बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बाँधती हैं और भाई बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हैं पर इस त्यौहार का सम्बन्ध सिर्फ भाई-बहन से ही नहीं है | जो भी हमारी रक्षा करता है या कर सकता है उसे हम राखी बाँधते हैं जैसे अपने पिता, पड़ोसी, हमारे सैनिक भाई और किसी राजनेता को भी राखी बांध सकते हैं | प्रकृति भी हमारी रक्षा करती है इस लिए पेड़ पौधों को भी राखी बाँधने का प्रचलन है ताकि उनकी रक्षा हो सके क्यों कि रक्षा सूत्र में अद्भुत शक्ति होती है ये बात खुद भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत में कही है | राखी का त्यौहार भाई-बहनों को स्नेह की डोर में बाँधने का त्यौहार है जिससे उनके रिश्तों में मिठास बनी रहती है और वो हमेशा इस डोर में बंधे रहते हैं | भाई बचपन से ले कर बुढ़ापे तक बहनों की रक्षा करते हैं और बहनें उनकी रक्षा के लिए उनकी कलाई पर रक्षासूत्र बांधतीं हैं | कहीं-कहीं पुरोहित भी अपने यजमान को उनकी उन्नति के लिए रक्षासूत्र बांधते है और यजमान उन्हें सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देते हैं | ये त्यौहार हमारे जीवन में मधुरता लाते हैं और ये हमारी सांस्कृतिक धरोहर भी हैं | इस त्यौहार को श्रावणी भी कहते हैं |
इस दिन सुबह बहनें स्नान करके थाली में रोली, अक्षत, कुंमकुंम और रंग-बिरंगी राखी रख कर दीपक जला कर पूजा करती हैं फिर पहले भगवान को राखी बाँध कर फिर अपने-अपने भाइयों के माथे पर रोली का तिलक करती हैं और दाहिनी कलाई पर राखी बाँधते हुए ये मन्त्र बोलती हैं |

येन बद्धो बलि: राजा दानवेन्द्रो महाबल:।
तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥

रक्षाबंधन के बारे में अनेकों पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं हैं।

रक्षाबन्धन कब प्रारम्भ हुआ इसके बारे में कोई निश्चित जानकारी नहीं है पर पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे पहले इन्द्र की पत्नी ने देवराज इन्द्र को देवासुर संग्राम में असुरों पर विजय पाने के लिए रक्षा सूत्र बंधा था। इस सूत्र की शक्ति से देवराज की युद्ध में विजय हुयी थी ।
पुराणों के एक और कथा के अनुसार बलि ने अपनी भक्ति के बल से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। विष्णु जी के घर न लौटने से परेशान लक्ष्मी जी ने नारद जी से उन्हें वापस लाने का उपाय पूछा, नारद जी ने उन्हें उपाय बताया तब नारद जी के कहेनुसार लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हे राखी बांध कर अपना भाई बनाया और भगवान जी को अपने साथ ले आयीं। उस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा थी। 
द्वापर में शिशुपाल के वध के समय जब सुदर्शन चक्र से श्री कृष्ण की उंगली कट गई तब द्रौपदी ने अपना आंचल फाड़कर उनकी उंगली पर बांध दिया था । उस दिन सावन की पूर्णिमा थी तब भगवान कृष्ण ने द्रौपदी को उनकी रक्षा का वचन दिया था और चीरहरण के समय उन्होंने अपना वचन निभाया था |
महाभारत में युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण के कहने पर अपनी सेना की रक्षा हेतु पूरी सेना को रक्षासूत्र बांधा था
| कुन्ती द्वारा अभिमन्यू की रक्षा हेतु उसे राखी बाँधने का उल्लेख भी मिलता है |
इतिहास उठा कर देखें तो उसमे भी राजपूत रानी कर्मावती की कहानी है। जब रानी ने अपने राज्य की रक्षा के लिए हुमायूं को राखी भेजी तब हुमायूं ने राजपूत रानी को बहन मानकर उनके राज्य को शत्रु से बचाया था ।
सिकंदर की पत्नी ने भी सिकंदर के हिन्दू शत्रु की कलाई में राखी बाँध कर सिकंदर के जीवन दान का वचन लिया था |
राखी प्रेम और सौहार्द का त्यौहार है | इस रक्षाबंधन पर सभी भाई ये संकल्प करें कि वो अपनी बहनों के साथ-साथ दूसरों की बहनों के सम्मान की भी रक्षा करेंगे और उनका अपमान ना करेंगे ना होने देंगे बहनों के लिए इससे बड़ा कोई उपहार नही  होगा |


सभी को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ |

मीना पाठक

(चित्र साभार गूगल )

Wednesday, August 6, 2014

मुक्तक


१-
जब भी ये सावन आता है
पिया की याद दे जाता है
जब से गये परदेश पिया
बैरी मधुमास न भाता है  ||
२-
कोमल दिल मुझसा पाओगे फिर कहाँ
जख्मों पर नमक छिड़क, जाओगे फिर कहाँ
जिंदा हूँ साँसों की गिनती खत्म होने तक
सुलग कर राख हो जाऊँगी जलाओगे फिर कहाँ ||

मीना पाठक 

Saturday, August 2, 2014

भगवान शिव को प्रिय है सावन



हिन्दू पंचांग के बारह मासों में श्रावण (सावन) मास भगवान शिव को सर्वाधिक प्रिय है | इस माह को वर्षा ऋतु भी कहते हैं | भगवान शिव को चंद्रमा बहुत प्रिय हैं इसी लिए उन्होंने चंद्रमा को अपने मस्तक पर धारण किया है जिसके कारण वह चन्द्रशेखर कहलाये | चन्द्रमा जल तत्व का ग्रह है इसी लिए इस माह में जल की अधिकता होती है |
सावन मास भगवान शिव को विशेष प्रिय है | इस लिए इस मास में शिव की पूजा अर्चना का विशेष महत्व और विधान है जिसे शिव भक्त बड़ी श्रद्धा से करते हैं तब आशुतोष शिवशंकर प्रशन्न हो कर मनोवांछित फल देते है |
सावन भगवान शिव को इतना प्रिय क्यों है ? इसके बारे में एक पौराणिक कथा में कहा गया है कि सती के देहत्याग करने के पश्चात जब आदिशक्ति ने अपने दूसरे जन्म में पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर में जन्म लिया तब उन्होंने अपने युवावस्था में इसी माह में निराहार रहकर कठोर तपस्या कर के भगवान शिव को प्रशन्न किया और उन्हें पति रूप में पाने का वरदान प्राप्त किया | सावन माह शिव और पार्वती के मिलन का माह है कहते हैं तभी से सावन मास शिव को अत्यधिक प्रिय हो गया | इसके अलावा भी और कई कारण है |
कहते हैं कि भगवान शिव इस मास पृथ्वी पर अपनी ससुराल आये थे तब उनका स्वागत आर्घ्य और जलाभिषेक से किया गया था इसी लिए ये महीना शिव को प्रिय है और पृथ्वीवासियों को उनकी कृपा पाने का मास भी है |
एक और कथा के अनुसार जब समुद्रमंथन से विष निकला था तब सम्पूर्ण श्रृष्टि की रक्षा हेतु भगवान शिव ने वो विष अपने कंठ में धारण कर लिया था उस विष के प्रभाव से उन्हें मूर्च्छा आ गई तब ब्रह्मा जी के कहने पर सभी देवताओं ने उन पर जलाभिषेक किया | कहते हैं तभी से भगवान शिव का जलाभिषेक होने लगा | यह अद्भुत घटना भी सावन मास में घटित हुआ इस लिए भी सावन मास शिव को प्रिय है | सर्प आशुतोष शिव के प्रिय आभूषण हैं अत: नागपंचमी का पर्व भी इसी महीने में मनाया जाता है |
सावन मास के प्रधान देवता भगवान शिव हैं | यही कारण है कि इस महीने शिव की पूजा का कई गुना फल प्राप्त होता है | इन्ही सब कारणों से माना जाता है कि भगवान शिव को सावन मास सबसे प्रिय है |
इस महीने कथा,प्रवचन,सत्संग सुनने का विशेष महत्व है |
 सावन में सोमवार व्रत अत्यधिक फल देने वाला होता है | शिवशंकर बहुत भोले हैं और जल उन्हें बहुत प्रिय है वो मात्र जलाभिषेक से ही प्रशन्न हो जाते हैं | प्रेम पूर्वक शिवपार्वती की पूजा आरती से आत्मिक सुख की प्राप्ति होती है |

`
ऊं नमः शिवाय

मीना पाठक
 

Friday, July 18, 2014

गाओ कजरी सखी आयो मधुमास



सावन मास आते ही वर्षा से धरा सिंचित हो कर अपने गर्भ में छुपे बीजों को अंकुरित कर देती है और पूरी धरा हरित हो जाती है | कोयल मीठे सुर में गाने लगती है, पपीहा पीहू करता है और मोर नाच उठते है | स्त्रियाँ लहरिया चुनरी, हथेलियों में मेहदी, कलाईयों में हरी चूड़ियाँ सजाने लगती हैं | ऐसे सुन्दर मधुमास का असर साहित्य पर ना पड़े ये कैसे हो सकता है | साहित्य पर भी हरियाली छा जाती है | साहित्यकारों की कलम चल पड़ती है | नीम के पेडों पर झूले पड़ जाते हैं और सावन में नैहर आई हुई सखियाँ एक दूसरे से ठिठोली करती, एक दूसरे का हाल पूछतीं, कजरी गातीं झूला झूलती हैं |
ऐसे ही एक दृश्य में नीम के पेड़ पर झूला पड़ गया है और सभी सखियाँ चुहल करती हुई झूला झूल रहीं हैं | दो सखियाँ  पींगे मारने के लिए रस्सी पकड़ कर पाटे पर खड़ी हो जाती हैं और दो सखियाँ पाटे पर बैठ जाती हैं | सखियाँ पींगे मारने लगती हैं और झूला धीरे-धीरे ऊपर नीचे होने लगता है | सब सखियाँ एक दूसरे से मिल कर खुशी से खिल उठी हैं पर एक सखी जो झूले पर दूसरी सखी के साथ बैठी है, उदास है | पास बैठी सखी उससे कहती है कि

गाओ कजरी सखी आयो मधुमास
पड़ गये झूले डाल-डाल पर
आयीं गुइयाँ सब खास
गाओ कजरी सखी आयो मधुमास ||
तब उदास सखी अपनी आँखों में जल भर कर कहती है कि
पी-घर छोड़ के नैहर आई
दिल पर ले कर जख्म हजार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
वहाँ पर खड़ी अपनी सभी सखियों के पाँवो में आलता, हथेलियों में रची मेहदी और कलाइयों में भरी-भरी हरी चूड़ियाँ देख कर वह कहती है कि --
हरी चूड़ियाँ मन ना भाये
आलता, महावर मुंह बिराए
कैसे रचाऊँ मेहदी,जख्मी मेरे हाथ
कैसे गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
उसे उदास देख कर सभी सखियाँ उदास हो जाती हैं | झूला रोक दिया जाता है वो फिर से अपनी वेदना सखियों से कहती है --
साथी थे जो जीवन पथ के
बोये शूल हर इक पग पे
सात वचन जो लिए थे हमने
टूटे जाने कितनी बार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
उसकी व्यथा सुन् कर सभी सखियाँ व्यथित हो जाती हैं क्यों कि वो तो यही सोच रहीं थीं कि उसकी सखी ससुराल में अपने पति के साथ बहुत खुश है | वो अपने आँसू पोंछते हुए अपने दिल का दर्द अपनी सखियों से बयान करती है --
अब ना भाये बिंदिया गजरा
नाक में लौंग आँख में कजरा
ना चुनरी लहरियादार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
जो बातें वो किसी को नही बता पा रही थी अपनी प्रिय सखियों को बता कर अपना मन हल्का कर रही है सखियाँ भी उसकी बात सुन् और समझ रहीं हैं वो भी अपनी सखी को इस हाल में देख कर दुखी हैं, उन सब की आँखों से झर-झर आँसू बह रहे हैं | बिलखते हुए उदास सखी फिर से कहती है--
व्यर्थ गया ये जीवन सारा
जीत कर भी सब कुछ हारा
पथिक हूँ अब पथ पे अकेली
छोड़ दिया हर इक ने साथ
कैसे गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
सभी सखियों ने अपने आँसू पोंछे फिर अपनी बिलखती सखी के आँसू पोंछ कर उसे गले लगा हौसला देते हुए बोलीं --
सुन् री सखी, नहीं तू अकेली
जीवन पथ पर संग हम सहेली
आँसू ना अब तू ढरका
हाथ बढ़े सबके इक साथ
गाओ कजरी सखी आयो मधुमास ||
जो जीवन से निराश हो चुकी थी अपनी सखियों का स्नेह भरा स्पर्श पा कर उसे जीने का हौसला मिलता है, मन का मवाद आँसूओं के साथ बह गया | सखियाँ फिर से झूले को पींगे मार कर झूलाती हैं और सभी सखियाँ मिल कर गाती हैं --

गाओ कजरी सखी आयो मधुमास ||


मीना पाठक
 

शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...