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Wednesday, June 3, 2020

दोहे













भोर हुयी दिनकर उठे, खिले कुसुम हर ओर|
फूटी आशा की किरण, नाचा मन का मोर ||

मन का स्वामी चन्द्रमा, भौंराए नित गोल|
क्यों ना बहके मन मेरा, पंछी करे किलोल ||

मीना पाठक

(चित्र-साभार गूगल) 

शापित

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