चाह नही मुझे कि..
मिलूँ तुमसे बागों व बहारों में
चाह नही मुझे कि..
मिलूँ तुमसे नदी के किनारों पे
मिलूँ तुमसे बागों व बहारों में
चाह नही मुझे कि..
मिलूँ तुमसे नदी के किनारों पे
चाह नही मुझे कि..
तुम छेड़ो बंसी की तान और
झूमती आऊँ मै
तुम छेड़ो बंसी की तान और
झूमती आऊँ मै
चाह नही कि..
तुम बैठो कदम्ब की डाल और
नाच के रिझाऊँ मै
चाह नही कि..
थामूं तुम्हारा हाथ और
निहारूँ तुम्हारी आँखों में
तुम बैठो कदम्ब की डाल और
नाच के रिझाऊँ मै
चाह नही कि..
थामूं तुम्हारा हाथ और
निहारूँ तुम्हारी आँखों में
चाह बस इतनी कि..
हे ! नाथ
छू लूँ तुम्हारे ‘पद पंकज’ और
हाथ हो तुम्हारा मेरे सिर पर ||
मीना पाठक
हे ! नाथ
छू लूँ तुम्हारे ‘पद पंकज’ और
हाथ हो तुम्हारा मेरे सिर पर ||
मीना पाठक
मीना जी कृष्ण को रीझाती काफी अच्छी रचना है। बधाई आपको ।
ReplyDeleteआभार अन्नपूर्णा जी
Deleteसहज, सुंदर, भक्ति रस और श्रद्धा को वर्णित करती रचना।
ReplyDeleteआभार आ. विजय जी
Deletesundar bhav pooran - rachnaa - badhaaee - meenaa jee
ReplyDeleteआभार मुकेश जी
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