Friday, December 26, 2014

स्त्री !

बसंती हवा  
गुलाबी शरद
गुनगुनी धूप सी,
शीतल जल 
पवन में सुगंध
कोयल के कूक सी,
कमलदल
सतरंगी रश्मियां 
शशि किरन सी,
बौराई भँवर
कल-कल सरिता
अटल  शिखर सी,
ऊर्वशी
शकुंतला
यशोधरा सी, 
स्त्री !!
जननी, तरणी,
संरक्षणी
सम्पूर्ण प्रकृति की संचालिनी
फिर भी !!
अबला, उपेक्षिता,
तिरष्कृता,
पराश्रिता सी
क्यूँ ??

Saturday, December 13, 2014

पापा की याद

"पापा आप कहाँ चले गये थे मुझे छोड़ कर" अनन्या अपने पापा की उंगुली थामे मचल कर बोली
"मैं तारों के पास गया था, अब वही मेरा घर है बेटा" साथ चलते हुए पापा बोले
"तो मुझे भी ले चलो न पापा तारो के पास !" पापा की तरफ़ देख कर बोली अनन्या
"नहीं नहीं..तुम्हें यहीं रह कर तारा की तरह चमकना है" पापा ने कहा
"पर पापा मैं आप के बिना नही रह सकती, मुझे ले चलो अपने साथ या आप ही आ जाओ यहाँ"
"दोनों ही संभव नही है बेटा..पर तुम जब भी मुझे याद करोगी मुझे अपने पास ही पाओगी,कभी हिम्मत मत हारना, उम्मीद का दामन कभी ना छोड़ना,खूब मन लगा कर पढ़ना, आसमां की बुलंदियों को छूना और धुवतारा बन कर चमकना बेटा, मैं हर पल तुम्हारे पास हूँ पर तुम्हारे साथ नही रह सकता |"
अचानक अनन्या की आँख खुल गई, सपना टूट गया, पापा उससे उंगुली छुडा कर जा चुके थे, उसकी आँखों में अनायास ही दो बूँद आँसू लुढक पड़े | आज एक मल्टीनेशनल कम्पनी में उसका इंटरव्यू था और रात उसे पापा की बहुत याद आ रही थी  |

मीना पाठक



Tuesday, December 9, 2014

यात्रा अंतर्मन की


सुरो आज अपने आप को रुई से भी हल्का महसूस कर रही है, एक अजीब सी खुशी और ऊर्जा का एहसास हो रहा है उसे जैसे अपनी जिंदगी की मंजिल पा गई हो | वो उड़ रही है इधर से उधर, अब उस पर कोई रोक-टोक या पाबंदी नही, वो अब कहीं भी आ जा सकती है, उड़-उड़ कर वो अपने घर मे मंडरा रही है ऐसा करने मे उसे बहुत आनंद आ रहा है |
थोड़ी देर बाद उसने देखा कि उसके पतिदेव उसे हिला कर जागा रहे हैं पर उसके शरीर मे कोई हलचल नही हो रही और अचानक ही घर मे कोहराम मच गया | बहुएं उसे जगाने का प्रयास कर रहीं हैं पर सुरो की नींद नही खुल रही | धीरे-धीरे घर मे भीड़ जुटने लगी, सुरो अपनी बहुओं को समझा रही है पर वो जैसे उनकी बात ही नहीं सुन पा रहीं |
पतिदेव को भी कह रही पर वो भी उसकी बात नही सुन रहे | सुरो परेशान है, वो तो सब को देख रही हैं, सुन रही है पर उनकी बात कोई नहीं सुन पा रहा है | क्या हो गया है सब को ? मेरा शरीर क्यूँ पड़ा है इस तरह ? वो कुछ भी समझ नही पा रही है | धीरे धीरे उनकी सब सहेलियां भी आ चुकी है, सब रो रहीं हैं | घर के बाहर पुरुषों की भीड़ लग गई और अन्दर महिलाओं की |
सुरो का शरीर बेड से उतार कर बहार जमीन पर एक चादर बिछा कर लिटा दिया गया है सभी वही बैठ गये
उसने देखा की उसकी सबसे प्यारी सखी रानी फूट फूट कर रो रही है | सब का रोना देख कर सुरो का अंतर्मन वेदना से दहल रहा था और वो किसी को भी समझाने मे असमर्थ थी | वो ये सोच कर परेशान थी कि उनका शरीर इस तरह से शांत क्यूँ है वो तो यहीं हैं फिर भी...........
पतिदेव भी रो-रो कर बेकल हो रहे हैं | सभी उन्हें समझाने मे लगे हैं, पर उनका रोना बंद नही हो रहा है | महिलाएं एक दूसरे से चर्चा कर रहीं हैं, सभी को उसके द्वारा किये गये कोई ना कोई कार्य याद आ रहा है, उसके हंसमुख, मिलनसार स्वभाव की चर्चा सभी कर रहीं हैं | धीरे-धीरे दोपहर हो गई कोई कब तक बैठा रहेगा, अपनी-अपनी संवेदनाएं दे कर सभी लोग  घर चले गये अब सिर्फ घर के ही लोग बचे हैं | सुरो के शरीर पास घूपबत्ती जला दी गई है, बहुए रो-रो कर बेदम हो कर वहीं बैठीं हैं | सुरो का बहुओं से बहुत लगाव था इन्हें रोता हुआ देख कर वो बहुत दुखी हो रही हैं | उन्होने ने देखा कि पतिदेव किसी से कह रहे हैं--
कल जायेगी, बेटों के आने के बाद |
शाम होते ही कुछ लोग गाड़ी से बर्फ की बड़ी सी सिल्ली ले कर आए हैं | अब सुरो का शरीर बर्फ के सख्त गद्दे पर लिटा दिया गया है |
धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार पहुँच रहे हैं, हर एक के आने पर एक बार फिर से हृदयविदारक दृश्य देख रही है सुरो | रात मे सास ससुर रिश्तेदारों से बात कर रहे हैं बहुएं और पतिदेव निढाल हैं | आज पहली बार अपने सास-ससुर के मुंह से अपनी तारीफ़ सुन कर बहुत गदगद है सुरो | वो तो दुनिया की सबसे अच्छी बहू थी अपने सास-ससुर की निगाह मे | बीच-बीच मे पतिदेव भी उसके त्याग और संघर्ष को बता रहे हैं |
जीवन के इस मोड़ पर क्यूँ छोड़ कर चली गई ये कह कर रो पड़ते हैं |
सुरो सोचने लगी, ये लोग जो आज बोल रहे हैं वो सच है या ये लोग जो कल तक बोलते थे वो सच था ??
सुरो कराह उठी इतने दोहरे व्यक्तित्व के कैसे हो सकते हैं ये लोग ?
वो शायद अब जीवित नही हैं, कई बार सुना था कि मरने के बाद आत्मा शारीर के आस-पास ही मंडराती रहती है, तो क्या वो ....... ????
अब सुरो समझ गई थी कि उनकी आत्मा शरीर छोड़ चुकी है | रातभर वो वहीं अपने बहुओं के पास बैठी रही और अपनी तारीफ़ सुनती रही पाति और सास ससुर के मुख से, पर हर तारीफ़ के बोल उसकी आत्मा कचोट रहे थे | अपने बेटे को सीने से लगाये बैठे थे वे लोग, कभी यही लोग शरीर भीतर मेरी आत्मा कुचलते रहे और आज भी वही कर रहे हैं | सुरो तो कब का मर जाना चाहती थी पर अपने बच्चों के लिए जीती रही और अब, जब अपने पोते-पोतियों के साथ हँसना चाहती थी, खेलना चाहती थी, तब आत्मा ने शरीर छोड़ दिया, ना तब कुछ वश मे था और ना ही कुछ आज उसके वश मे है | पति को रोते हुए देख कर कभी तो उसे हँसी आ रही थी तो कभी उसका दिल नफरत से भर रहा था | इसी आदमी ने जानवरों से भी बद्तर वर्ताव किया था, मेरे शरीर को कितनी बार काले नीले रंगों से भर दिया था, उसकी पीड़ा आज भी महसूस करती हूँ और आज सब को दिखाने के लिए रोना पीटना ...... हुंह ,,,
नफरत है तुम से बुदबुदाई सुरो | पर उनकी आवाज कोई नही सुन पाया |
सुबह हो गई है सुरो ने देखा कि सामने वाली भाभी जग मे चाय ले कर आयीं हैं उन्होंने सब को जबरजस्ती चाय पिलाई और थोड़ी देर बैठ कर चली गयीं | करीब आधे घंटे बाद एक कार आ कर रुकी, दरवाजा खुला और बेटे दौड़ कर माँ के शरीर से लिपट गये एक बार फिर से दृष्य हृदयविदारक हो गया ..रोने की आवाज सुन कर फिर से भीड़ जुटने लगी, कई लोगों ने बेटों को मेरे शरीर से अलग किया, पर वो किसी से भी सम्भल नहीं पा रहे थे, अपने-अपने पति को यूँ रोते देख कर बहुएं भी फिर से बिलख कर रो पड़ीं | सुरो तड़प रही थी बेटों को हृदय से लगाने के लिए पर कुछ भी नहीं कर पा रही थी, बेटों को बिलखता देख हर एक के आँख मे आँसू हैं,
अब जाने की तैयारी हो रही है बाहर कुछ लोग बांस का बिछौना तैयार कर रहे है....रानी बहुओं को समझती जा रही है और बहुएं अपनी सासू माँ को विदा करने के लिए तैयार कर रहीं हैं |
 ऐसा लग रहा है जैसे सुरो सज-धज कर सो रही हो ..लाल जरीवाली साड़ी जो बड़े बेटे ने अपनी पहली तनख्वाह पर खरीद कर दी थी सुरो को, उसे याद आ रहा है, उस दिन वो कितनी खुश हुई थी बेटे से इतनी महँगी साड़ी पा कर पर पहनने मे हिचकती थी क्यों कि साड़ी सुर्ख लाल रंग की थी इस लिए उसे सम्भाल कर रख दी थी | वही साड़ी बहुओं ने पहना दी थी, लाल बिन्दी, लाल चूड़ियाँ, महावर नये बिछुए सब पहनने के बाद सिन्दूर लगाने के लिए पतिदेव को लाया गया उनके कुछ मित्रों ने उन्हें सम्भाल रखा था | बहू ने सिन्होरा खोल कर आगे बढ़ा दिया पतिदेव ने दुबारा सुरो की मांग भर दी और सुरो सोचने लगी कि ये सिन्दूर किसने बनाया ? ये एक चुटकी सिन्दूर किसी के जीवन का फैसला कर देता है, फैसला अच्छा हुआ तो जीवन सफल और गलत हुआ तो जीवन को बोझ की तरह ढोना पड़ता है अपने ही कन्धों पर |
अचनक कुछ लोगों ने झट से सुरो के शरीर को उठा कर बांस के बिछौने पर लिटा दिया, एक बहू दौड़ कर भीतर से चश्मा उठा लाई....सुरो को चश्मा लगा कर बोली --
मम्मी चश्मे के बिना नहीं रह पातीं सभी लोग फूट फूट कर रो पड़े ..हिचकियों और रोने-बिलखने की आवाज से वातावरण ग़मगीन हो गया था..झट से दोनों बेटों और पतिदेव ने बांस का बिछौना उठा लिया और चल पड़े, सब कुछ पीछे रह गया |
कुछ महिलाएँ बतिया रहीं थीं
कितनी भागमान थी सुरो, पति और बेटों के कंधे पर चढ़ कर विदा हो रही है |
सुरो सब कुछ देख-सुन रही है | उसे जहाँ ले जाया गया वहाँ भी एक लकड़ी की सेज तैयार है जिस पर उसे लिटा दिया गया है ऊपर से लकड़ियाँ रख कर पतिदेव के हाथ से उनमे आग लगा दी गई लकडियाँ धूं धूं कर जल उठीं, बेटे माँ को जलता देख तड़प उठे, सुरो कराह उठी ..आह्ह !!! आखिर इन्होने ने मुझे राख मे तब्दील कर ही दिया, मेरा पूरा जीवन
होम हो गया !


अचानक गर्मी से पूरा शरीर तपने लगा रोम छिद्रों से पसीने की बूंदे रिसने लगीं और सुरो की आँख खुल गई | लाइट चली गई थी पंखा बंद होने की वजह से नींद टूट गई, सुरो भौचक्की हो अपने आस-पास देख रही थी, समझने की कोशिश कर रही थी कि वो स्वप्न देख रही थी या सच मे वो जीवित नही है | वो अपने अन्दर कुछ कमजोरी सी महसूस कर रही थी, उसने  बहू को आवाज दे कर पानी माँगा ये देखने के लिए जी वो जिन्दा है भी कि नही | बहू पानी ले आई, सुरो ने बहू को अपने सीने से लगा लिया बहू चौंक पड़ी क्या हुआ मम्मी जी ? सुरो की आँखों से आँसू निकल पड़े अपनी अंतिम यात्रा से वापस आ रही हूँ | बहू उनका मुंह देखने लगी, सुरो ने आँसू आँचल में समेट लिया | 

मीना पाठक
कानपुर-उत्तर प्रदेश    

Tuesday, October 28, 2014

सूर्योपासना का महापर्व है छठ

हमारे देशमें सूर्योपासनाके लिए प्रसिद्ध पर्व है छठ। सूर्य षष्ठी व्रत होनेके कारण इसे छठ कहा गया है। पारिवारिक सुख-स्मृद्धि तथा मनोवांछित फलप्राप्ति के लिए यह पर्व मनाया जाता है। इस पर्व को स्त्री और पुरुष दोनों मिल कर मनाते हैं। छठ व्रतके संबंध में अनेक कथाएं प्रचलित हैं; उनमें से एक कथाके अनुसार जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। तब उसकी मनोकामनाएं पूरी हुईं तथा पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोकपरंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मइया का संबंध भाई-बहन का है। लोक मातृका षष्ठी की पहली पूजा सूर्यने ही की थी। यह पर्व चार दिनों का होता है ।
भैयादूज के तीसरे दिन नहाये खाए से यह आरंभ होता है। पहले दिन सेंधा नमक, घी से बना हुआ अरवा चावल और कद्दूकी सब्जी प्रसाद के रूप में व्रती को दिया जाता है । अगले दिनसे उपवास आरंभ होता है इसे खरना कहते है । इस दिन रात में गन्ने के रस की बखीर बनती है। व्रतधारी पूरे दिन व्रत रखने के बाद रात में देवकुरी के पास भोग लगाने के बाद यह प्रसाद लेते हैं। तीसरे दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी को दिन में छठ प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद के रूप में ठेकुआ,जिसे टिकरी या खजूर भी कहते हैं, के अलावा चावल के लड्डू बनाये जाते हैं। प्रसाद बनाते हुए सभी महिलाएँ छठ मईया के गीत गाती हैं |
निर्धन जानेला ई धनवान जानेला,
महिमा छठ मईया के अपार ई जहां जानेला ||

हम करेली छठ बरतिया से उनखे लागी.........आदि

इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया मौसम के सभी फल जैसे - सेव, केला, नाशपाती,शरीफा,अदरक,मूली,कच्ची हल्दी, नारियल,सुथनी आदि भी छठ प्रसाद के रूप में शामिल होता है।
शाम को पूरी तैयारी कर बाँस की टोकरी (दौरा)में नयी साड़ी या पीला कपड़ा बिछा कर उसमे ठेकुआ, फल, ऐपन,सभी प्रकार के प्रसाद  और अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, व्रती के साथ बड़ी श्रद्धाभाव से दौरा सिर पर रख कर परिवार तथा पड़ोस के लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने घाट की ओर गीत गाते हुए चल देते हैं।
*काँच ही बाँस के बहँगिया, बहँगी लचकति जाय |
बात जे पुछेलें बटोहिया, बहँगी केकरा के जाय ?
तू त आन्हर हउवे रे बटोहिया, बहँगी छठी माई के जाय...*
सभी छठव्रती एक तालाब या नदी किनारे इकट्ठा हो कर नदी या तालाब की मिट्टी से बनायी गई छठ मईया की पिंडी पर ऐपन, लगा कर पीले सिन्दूर से टिकती हैं फिर दिया जला कर सभी फल, फूल, ठेकुआ आदि समर्पित करती हैं और गीत गाती हैं --
*सेविले चरन तोहार हे छठी मइया। महिमा तोहर अपार....*
फिर व्रती घुटनों तक जल में खड़े हो कर सामूहिक रूप से छठी मैया की प्रसाद भरे सूप को ले पूजा कर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य यानी दूध अर्पण करते अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। जो लोग भीड़ के डर से घाट पर नही जाना चाहते वो अपने घर में ही कृत्रिम तालाब का निर्माण करते हैं और उसी को घाट मान उसमे खड़े हो कर सूर्य को जल और दूध का अर्घ्य देते  हैं | नदी या तालाब के जल में दीपदान भी किया जाता है। इस दौरान कुछ घंटों के लिए घाटों पर मेले सा दृश्य बन जाता है। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को अलभोर में ही व्रती उसी नदी या पोखर में घुटनों तक जल में खड़े हो कर सूर्य देव के उदय होने की प्रतीक्षा करते हुए गीत गाती हैं --
निंदिया के मातल सुरुज अँखियो न खोले हे...
उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर...
और पहली किरण के साथ उदित होते ही सूर्य को अर्घ दिया जाता है। फिर सभी सुहागनों की मांग बहोरी जाती है । अंत में व्रती कच्चे दूध का सरबत पीकर तथा थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।*
छठ पूजा में कोसी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मइया से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए कोसी  भरी जाती है या जब घर में नयी बहू या पुत्र का जन्म होता है तब भी कोसी भरने की परम्परा है | इसके लिए छठ पूजन के साथ-साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी की कोसी (बड़ा घड़ा) जिस पर छ: दिए होते हैं देवकरी में रखे जाते हैं और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी किनारे पूजा की जाती है नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है। कोसी की इस अवसर पर काफी मान्यता है उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है कि छठ मइया को कोसी कितनी प्यारी है।
रात छठिया मईया गवनै अईली                                                                  
आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली
बिलम्बली बिलम्बली कवन राम के अंगना
जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां,
जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा
उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे तहवां*
इस पूजा में पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है।। आजकल कुछ नई रीतियां भी आरंभ हो गई हैं, जैसे घाटों पर पंडाल और सूर्यदेवता की मूर्ति की स्थापना करना। उसपर भी काफी खर्च होता है और सुबह के अर्घ्यके उपरांत आयोजनकर्ता माईक पर चिल्लाकर प्रसाद मांगते हैं। पटाखे भी जलाए जाते हैं। कहीं-कहीं पर तो ऑर्केस्ट्राका भी आयोजन होता है; परंतु साथ ही साथ दूध, फल, उदबत्ती भी बांटी जाती है। पूजा की तैयारी के लिए लोग मिलकर पूरे रास्ते की सफाई करते हैं।
छठ पूजा का आयोजन आज बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के हर कोने में किया जाता है | मारीशस में यह त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है कलकत्ता,चेन्नई,मुम्बई जैसे महानगरों में भी समुद्र किनारे जन सैलाब दिखाई देता है | प्रशासन को इसके लिए विशेष प्रबंध करने पड़ते हैं | वैज्ञानिक दृष्टि से भी सूर्य की पूजा या जल देना लाभदायक माना जाता है |वैसे तो रोज ही मंत्रोच्चारण के साथ लोग सूर्य को जल अर्पित करते हैं पर इस पूजा का विशेष महत्व है | इस पूजा में व्रतियों को कठिन साधना से गुजरना पड़ता है |

सभी को छठ महा पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ..जय छठी माई की ..

शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...