भले कुछ भी लिखू लिख के मिटा देती हूँ
इसी जद्दोजहद मे वक्त गँवा देती हूँ
नाराज शब्द हुए मेरी कलम से शायद
हाथ आते ही हर वक्त सदा देती हूँ ||*
मेरे हर शब्द पर, ऊँगली उठाना छोड़ दो
कलम का दिल बड़ा कोमल, दुखाना छोड़ दो
मेरे जज़्बात की छत, कांपती है खौफ से
हिकारत की ज़रा बिजली, गिराना छोड़ दो ||*
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