सोचा न था मंजर यूँ बदल जायेंगे 
आसमां से ज़मी पर उतर आएँगे,
चलते थे जो फूलों भरी राह पर 
पाँव वो लहु-लूहान हो जाएँगे
सोचा न था मंजर यूँ बदल जायेंगे |
महकता था दामन जो इत्र की सुगंध से 
दुर्गन्ध में पसीने की बदल जाएँगे 
रहते थे जो रौशनी की चकाचौंध में 
यूँ अंधेरों में मुंह अपना छुपाएंगे
सोचा न था मंजर यूँ बदल जायेंगे  |
आँचल में छुप-छुप किलकारियां भरते थे जो 
अब सीना तान दिखाएँगे 
कहा करते थे आने ना देंगे आँसू कभी 
वही आँखों में समंदर भर जाएँगे 
सोचा न था मंजर यूँ बदल जाएँगे |
दौड़ कर लग जाते थे कभी जो सीने से 
मुंह फेर कर अब चले जाएँगे, 
भरोसे की चादर ओढ़, चैन से सोते थे बेखबर हम 
चादर वो खींच कर ले जाएँगे 
सोचा न था मंजर यूँ बदल जाएँगे ||
  
 
 
 
 
 
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