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सभी को फादर्स डे पर
अपने-अपने पापा के लिए कुछ न कुछ लिखते देख रही हूँ, पढ़ रही हूँ और अपनी आँखों में आँसू भर
कर सोच रही हूँ कि मै क्या लिखूँ ? ..११
या १२ साल की उम्र थी तभी पापा इस दुनिया से चले गये | उस समय माँ को ११
महीने के छोटे भाई को गोद में लिए रोते-बिलखने देख मै भी रोई पर समझ नही पायी कि
मैंने खुद क्या खो दिया | पापा
के अंतिम दर्शन भी मैं नहीं कर पायी थी जिसका जीवन भर अफसोस रहेगा |..जिस दिन पापा इस
दुनिया से गये शायद उसी दिन से मुझमें आत्मविश्वास की कमी हो गई जो आज तक है | आखिरी के दो वर्ष
पापा के साथ रही | माँ
बताती हैं कि पापा पर अपने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी थी इसीलिए वो माँ के साथ
हम सब को गाँव में ही रखते थे | जब
तीनों बुआ की शादी हो गई और छोटे चाचा की नौकरी पापा के प्रयासों से लग गई तब पापा
ने माँ को अपने पास बुलाया | होश
संभालने के बाद कुल दो वर्ष पापा के सानिध्य में रही हूँ | पापा कानपुर
आर्डिनेन्स में कार्यरत थे | रोज
सुबह सायकिल से जाते हुए देखती और शाम को आते हुए, रात की ड्यूटी भी लग जाती थी अक्सर | माँ जब अंगीठी जलाने
के लिए गोले बनाती तब माँ को धूप से बचाने के लिए पापा को छाता ले कर खड़े होते हुए
देखा है| जब
पापड़ बनाती तब भी पापा छाता ले कर खड़े हो जाते|
माँ की किसी डिमांड पर स्नेह से समझाते हुए देखा है| कुल दो जोड़ी कपड़े, पैरों में साधारण सी
चप्पल| पर, यहाँ से ले कर गाँव
तक सभी का ध्यान रखते | कुल
वही दो वर्ष की यादें संजोये रखती हूँ | ऐसा
नही है कि आज फादर्स डे है इसलिए पापा को याद कर रही हूँ| पापा की याद हर उस
समय आती है जब किसी बच्ची को अपने पापा की उंगुली थामे जाते देखती हूँ| जब भी मुझे हल्की सी
भी ठोकर लगती है या जब भी मुझे किसी मजबूत सहारे की जरुरत होती है तब पापा और बस्
पापा ही याद आते हैं| तब
सोचने लगती हूँ कि शायद इसीलिए पापा को सभी बरगद का पेड़ कहते हैं | पापा का मतलब ‘मैं खुद’| पर जब पापा ही नही
हैं तो ‘मै’ कहाँ हूँ..जैसे पेड़
से टूटा हुआ पत्ता जिसे हवा का हल्का सा झोंका भी एक जगह से उठा कर दूसरी जगह पटक
देता है| पत्ता
चोट से कराहता तो है पर उसे वो पेड़ नही मिलता जो सहारा दे सके, सम्भाल सके| आखिर में वो पीला
पड़ने लगता है और एक दिन सूख जाता है| फिर
या तो उसे कोई पैरों तले कुचल कर मिट्टी में मिला देता है या चूल्हे में झोंक कर
जला देता है | पापा
की तस्वीर है मेरे पास| पर
मैं कभी उस तस्वीर को निगाह भर नहीं देख पाती हूँ| आँखे आंसुओं से लबालब हो जातीं है और
तस्वीर धुंधली हो जाती है...और क्या-क्या लिखूँ....Pc की स्क्रीन बार-बार धुँधली हो जा रही है
| आप फादर्स डे
पर अपने पापा से बस इतना ही कहना चाहूँगी कि :- “पापा आप जहाँ भी हों खुश रहिएगा| यहाँ सब ठीक है| आप की कमी बहुत खलती
है| जीवन
में सब कुछ है पर आप की रिक्तता कभी भर नही पायी और न ही कभी भरेगी | बहुत याद करती हूँ| आप को ढूंढती हूँ पर
पता है आप कभी नही मिलेंगे | और
ज्यादा क्या लिखूँ आप जहाँ भी हैं वहीं से सब देख रहे हैं.. कुछ छुपा नही आप से
...एक इच्छा जो आख़िरी इच्छा भी है, जो
कभी पूरी नही होगी ये भी जानती हूँ पर फिर भी आप से कहूँगी...बस एक बार, बस एक बार अपने सीने
से मुझे लगा लीजिए बस...तरस रही हूँ आप के स्नेह को...आप के स्नेह भरे स्पर्श
को...फिर मेरे सारे जख्म भर जायेगे ..पापा...बस एक बार......................|” आप की लाडली
मीना धर
मीना धर
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