सावन मास आते ही वर्षा से धरा सिंचित हो कर अपने गर्भ में छुपे बीजों को अंकुरित कर देती है और पूरी धरा हरित हो जाती है | कोयल मीठे सुर में गाने लगती है, पपीहा पीहू करता है और मोर नाच उठते है | स्त्रियाँ लहरिया चुनरी, हथेलियों में मेहदी, कलाईयों में हरी चूड़ियाँ सजाने लगती हैं | ऐसे सुन्दर मधुमास का असर साहित्य पर ना पड़े ये कैसे हो सकता है | साहित्य पर भी हरियाली छा जाती है | साहित्यकारों की कलम चल पड़ती है | नीम के पेडों पर झूले पड़ जाते हैं और सावन में नैहर आई हुई सखियाँ एक दूसरे से ठिठोली करती, एक दूसरे का हाल पूछतीं, कजरी गातीं झूला झूलती हैं |
ऐसे ही एक दृश्य में नीम के पेड़ पर झूला पड़ गया है और सभी सखियाँ चुहल करती हुई झूला झूल रहीं हैं | दो सखियाँ पींगे मारने के लिए रस्सी पकड़ कर पाटे पर खड़ी हो जाती हैं और दो सखियाँ पाटे पर बैठ जाती हैं | सखियाँ पींगे मारने लगती हैं और झूला धीरे-धीरे ऊपर नीचे होने लगता है | सब सखियाँ एक दूसरे से मिल कर खुशी से खिल उठी हैं पर एक सखी जो झूले पर दूसरी सखी के साथ बैठी है, उदास है | पास बैठी सखी उससे कहती है कि –
गाओ कजरी सखी आयो मधुमास
पड़ गये झूले डाल-डाल पर
आयीं गुइयाँ सब खास
गाओ कजरी सखी आयो मधुमास ||
तब उदास सखी अपनी आँखों में जल भर कर कहती है कि –
पी-घर छोड़ के नैहर आई
दिल पर ले कर जख्म हजार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
वहाँ पर खड़ी अपनी सभी सखियों के पाँवो में आलता, हथेलियों में रची मेहदी और कलाइयों में भरी-भरी हरी चूड़ियाँ देख कर वह कहती है कि --
हरी चूड़ियाँ मन ना भाये
आलता, महावर मुंह बिराए
कैसे रचाऊँ मेहदी,जख्मी मेरे हाथ
कैसे गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
उसे उदास देख कर सभी सखियाँ उदास हो जाती हैं | झूला रोक दिया जाता है वो फिर से अपनी वेदना सखियों से कहती है --
साथी थे जो जीवन पथ के
बोये शूल हर इक पग पे
सात वचन जो लिए थे हमने
टूटे जाने कितनी बार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
उसकी व्यथा सुन् कर सभी सखियाँ व्यथित हो जाती हैं क्यों कि वो तो यही सोच रहीं थीं कि उसकी सखी ससुराल में अपने पति के साथ बहुत खुश है | वो अपने आँसू पोंछते हुए अपने दिल का दर्द अपनी सखियों से बयान करती है --
अब ना भाये बिंदिया गजरा
नाक में लौंग आँख में कजरा
ना चुनरी लहरियादार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
जो बातें वो किसी को नही बता पा रही थी अपनी प्रिय सखियों को बता कर अपना मन हल्का कर रही है सखियाँ भी उसकी बात सुन् और समझ रहीं हैं वो भी अपनी सखी को इस हाल में देख कर दुखी हैं, उन सब की आँखों से झर-झर आँसू बह रहे हैं | बिलखते हुए उदास सखी फिर से कहती है--
व्यर्थ गया ये जीवन सारा
जीत कर भी सब कुछ हारा
पथिक हूँ अब पथ पे अकेली
छोड़ दिया हर इक ने साथ
कैसे गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
सभी सखियों ने अपने आँसू पोंछे फिर अपनी बिलखती सखी के आँसू पोंछ कर उसे गले लगा हौसला देते हुए बोलीं --
सुन् री सखी, नहीं तू अकेली
जीवन पथ पर संग हम सहेली
आँसू ना अब तू ढरका
हाथ बढ़े सबके इक साथ
गाओ कजरी सखी आयो मधुमास ||
जो जीवन से निराश हो चुकी थी अपनी सखियों का स्नेह भरा स्पर्श पा कर उसे जीने का हौसला मिलता है, मन का मवाद आँसूओं के साथ बह गया | सखियाँ फिर से झूले को पींगे मार कर झूलाती हैं और सभी सखियाँ मिल कर गाती हैं --
गाओ कजरी सखी आयो मधुमास ||दिल पर ले कर जख्म हजार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
वहाँ पर खड़ी अपनी सभी सखियों के पाँवो में आलता, हथेलियों में रची मेहदी और कलाइयों में भरी-भरी हरी चूड़ियाँ देख कर वह कहती है कि --
हरी चूड़ियाँ मन ना भाये
आलता, महावर मुंह बिराए
कैसे रचाऊँ मेहदी,जख्मी मेरे हाथ
कैसे गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
उसे उदास देख कर सभी सखियाँ उदास हो जाती हैं | झूला रोक दिया जाता है वो फिर से अपनी वेदना सखियों से कहती है --
साथी थे जो जीवन पथ के
बोये शूल हर इक पग पे
सात वचन जो लिए थे हमने
टूटे जाने कितनी बार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
उसकी व्यथा सुन् कर सभी सखियाँ व्यथित हो जाती हैं क्यों कि वो तो यही सोच रहीं थीं कि उसकी सखी ससुराल में अपने पति के साथ बहुत खुश है | वो अपने आँसू पोंछते हुए अपने दिल का दर्द अपनी सखियों से बयान करती है --
अब ना भाये बिंदिया गजरा
नाक में लौंग आँख में कजरा
ना चुनरी लहरियादार
क्या गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
जो बातें वो किसी को नही बता पा रही थी अपनी प्रिय सखियों को बता कर अपना मन हल्का कर रही है सखियाँ भी उसकी बात सुन् और समझ रहीं हैं वो भी अपनी सखी को इस हाल में देख कर दुखी हैं, उन सब की आँखों से झर-झर आँसू बह रहे हैं | बिलखते हुए उदास सखी फिर से कहती है--
व्यर्थ गया ये जीवन सारा
जीत कर भी सब कुछ हारा
पथिक हूँ अब पथ पे अकेली
छोड़ दिया हर इक ने साथ
कैसे गाऊँ सखी भाये ना मधुमास ||
सभी सखियों ने अपने आँसू पोंछे फिर अपनी बिलखती सखी के आँसू पोंछ कर उसे गले लगा हौसला देते हुए बोलीं --
सुन् री सखी, नहीं तू अकेली
जीवन पथ पर संग हम सहेली
आँसू ना अब तू ढरका
हाथ बढ़े सबके इक साथ
गाओ कजरी सखी आयो मधुमास ||
जो जीवन से निराश हो चुकी थी अपनी सखियों का स्नेह भरा स्पर्श पा कर उसे जीने का हौसला मिलता है, मन का मवाद आँसूओं के साथ बह गया | सखियाँ फिर से झूले को पींगे मार कर झूलाती हैं और सभी सखियाँ मिल कर गाती हैं --
मीना पाठक