Thursday, September 12, 2013

बेटों पर भी निगाह रखना जरूरी

वो बार- बार घड़ी देखती और बेचैनी से दरवाजे  की तरफ देखने लगती  |५ बजे ही आ जाना था उसे अभी तक नही आया , कोचिंग के टीचर को भी फोन कर चुकी उन्होंने तो ४:३० बजे ही छोड़ दिया था पर अभी तक ........
सरोज का दिल बैठा जा रहा था | उसे यूँ परेशान देख कर उसकी सास मुंह बना कर बोली "अरी महारानी बेटा है वो तेरा कोई बेटी ना है जो तू इतनी परेशान है |" सरोज बोली " माँ जी यही उम्र है बिगड़ने और बनने  की इस समय अगर निगाह नहीं रखूँगी तो समय हाथ से निकल जाएगा | आप लोगो ने जीवन भर लडकियों पर रोक लगाया ना जाने कितनी पाबंदियां  लगाई, उन के ऊपर निगाह रखा की वो कब क्या कर रही है, कहाँ जा रहीं हैं और लड़कों को सर पर चाढाया पर अब समय आ गया है की वो सारी  पाबंदियां बेटो पर भी लगाई जाए, उन पर भी निगाह रखा जाय की वो कब और कहाँ  जा रहें हैं क्या कर रहे है,
किस किस के साथ उनका उठाना बैठना है | शाम तक घर में आ जाना है और रात में उन्हें घर से बाहर नही निकलना है ये सारी पाबंदियां  उन पर भी होनी चाहिए | गेट पर खट की आवाज सुन कर सरोज दौड़ कर गेट खोलने आई देखा तो हाथ में फ़ाइल लिए बेटा कुछ डरा हुआ सा सायकिल लिए खड़ा था | सरोज वहीँ शुरू हो गयी " कहाँ थे अभी तक, कोचिंग तो तुम्हारी कब की छूट गयी थी फिर तुम इस समय तक क्या कर रहे थे |  बेटा बोला मम्मी प्रोजेक्ट की फ़ाइल बना रहा था रोहित के साथ उसी के घर में देर लग गयी, उसके पापा मुझे छोड़ने आये है आप चाहो तो उनसे पूछ लो  | सरोज ने देखा स्कूटर पर एक महाशय बैठे हुए थे उन्होंने एक पैर ज़मीन पर टिका रखा था | उन्होंने बताया आप परेशान ना हो ये बच्चा मेरे घर पर ही था, देर हो गयी थी इसी लिए मैं खुद इनके साथ आया हूँ  | ये सुन कर सरोज को तसल्ली हुई | बेटे को हिदायत देती हुयी बोली आगे से ऐसी गलती न हो मुझे पता होना चाहिए कि तुम कहाँ हो और किसके साथ हो | बेटे ने सिर हिला कर हामी भरी तब जा कर सरोज ने उसे अन्दर आने का रास्ता दिया |



मीना पाठक

11 comments:

  1. बहुत अच्छा संदेश मीना ....

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  2. धन्यवाद यशोदा जी

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  3. सखी आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया की आज समय की मांग है की बेटियों पर ही नहीं बेटों पर भी सख्त रवैया अपनाया जाए । वो बेटे हैं यह सोच उन्हें ढील ना दी जाये। जिससे समाज में सभी की बेटियाँ सुरक्षित रहें ।

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  4. धन्यावाद रामी

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  5. बहुत ही सुन्दर कथा है ये. ओ बहुत बधाई और आभार इस सुन्दर सन्देश के लिए.

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    1. बहुत बहुत आभार बृजेश जी

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  6. संदेशपरक रचना

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद ओंकार जी

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  7. अत्यंत आवश्यक सन्देश..... माता-पिता का प्रथम कर्तव्य है कि बेटों को भी उसी प्रकार संस्कारों और सीमाओं में बाँधें जैसे बेटियों को हमेशा से बाँधा है.... यदि ऐसा हो जाए तो बेटियाँ भी जीवित हो उठेंगी. आपके विचार पढ़ कर बहुत अच्छा लगा

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    1. धन्यवाद आ० अंजू जी

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