गाँव अब गाँव नही रहे
नहीं सुनाई देता अब
चाची और बुआ के गीत
जो वो भोर में जांत पर
गेंहू पीसते हुए गातीं थी
नहीं सुनाई देता अब
माँ के पायलों की
छम-छम जो ढेंका पर
धान कूटते हुए माँ के पैरों
से आती थी
नहीं सुनाई देते अब
बैलों के घंटी की आवाज
जो खेत जोतते समय
उनके गले से आती थी
किसी के घर जाने पर
अब नहीं मिलता वो
गुड़,भूजा और चिवड़ा
नहीं है अब वो आम,
अमरुद और जामुन के
पेड़ जहाँ हम बचपन
में ओल्हा-पाती खेलते थे
नहीं है अब वो मड़इयां
और खपरैल, मिट्टी के
चूल्हे पर बटुली में खदकता
अदहन भी नहीं अब
नहीं दिखतीं अब बैल-गाड़ी पर
गीत गाती हुई मेला जाती औरतें
नहीं होता अब गन्ने की पेराई,
गेंहू की दंवाई और धान की ओसाई
नहीं दीखते अब डोली और कंहार
ना जाने कहाँ खो गया ये सब
मशीनों की होड़ और आधुनिकता
की दौड़ में गाँव अब गाँव नहीं रहे ||
चित्र-गूगल
jee ye dard sabee samvedan sheel insaan kaa hai - khoobsoorat kavitaa - badhaaee Meenaa jee
ReplyDeleteआभार मुकेश जी
ReplyDeleteसत्य वर्णन किया है आपने ..........
ReplyDeleteशुक्रिया जी
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