आज बहुत दिनों बाद मै मिश्रा जी के घर
जा रही थी | उनके चार बच्चें हैं, दो बेटे और दो बेटियाँ | दोनों बेटे बड़े हैं बेटियों से, दोनों की शादी
हो चुकी है,दोनो बहुएं पढ़ी-लिखी होने के बावजूद घरेलू जीवन बिता रहीं हैं उन्हें
कुछ करने की आजादी नही है जब कि लगभग उनकी हमउम्र ननदें पढ़ाई पूरी कर के जॉब कर
रहीं हैं | अभी पिछले महीने ही बड़ी की शादी हुई है | छोटी अभी है शादी के लिए, वो
एक कोलेज में इग्लिश की प्रोफ़ेसर है और कोचिंग से भी उसको बहुत आमदनी है तो घर में
उसकी तूती बोलती है | बिना उससे पूछे घर में कोई निर्णय नही लिया जाता है और बहुएँ
... कोई दीदी के नहाने के लिए पानी गर्म कर रही है तो कोई जल्दी-जल्दी नाश्ता बना
रही है | दीदी के नहा के आते ही उनकी साड़ी स्त्री की हुई रख दी जाती है, नाश्ता
मेज पर लग जाता है, उनका पर्श उनका मोबाइल उनकी जरुरत का हर सामान उनके सामने
हाज़िर हो जाता है उसके बाद ठाट से दीदी तैयार हो कर घर से निकल जातीं हैं | यही सब
सोचते हुए मै उनके घर पहुँच गई |
मिसराइन चाची ने ही गेट खोला मैंने उनका पैर छूआ वो भी मुझे देख कर खुश हो गईं, मै भी खुशी-खुशी अन्दर जा कर सोफे पर बैठ गयी | चाची ने आवाज लगाईं “अरे तनी आ के देखा लोगिन के आईल बा, तोहा लोगिन के सुत्ते के अलावा कउनो काम नइखे”.. आवाज देने के बाद मुझसे मुखातिब हो कर चाची कहने लगी “दिनवा भर सुत्ते ला लोग, का जाने केतना नींद आवेला ये लोगिन के”| मैंने हँस के कहा “ अरे चाची जी, सोने दीजिए, आप हैं ना मेरे पास, वो थक गयीं होंगी काम कर के |” चाची मुझे बहुओं का पक्ष लेते हुए देख कर थोड़ा तल्खी से बोली “कवन काम बा घरवा में, गैस पर खाना बनावे के बा, स्टील के बर्तन धोवे के बा और मिश्रा जी जमीनिया पर टायल लगवा दिहले बानी कऊन बड़ा मेहनत के काम करेला लोग, अरे काम त हम करत रहनी चूल्हा पर पुयरा झोंक-झोंक के खाना बनावत रहनी और फूल-पीतल के बर्तन माजत-माजत अऊर गोबर लीपत-लीपत कमरिये टूट जात रहे, तब्बो सास रानी के मुंह सीधा नाही रहे तौनो पे दुई चार ननद लोग धमकल रहत रहे लोग” चाची की बातें सुन के मुझे उलझन हो रही थी, चाची पुराण शुरू हो गया था,कहाँ से कहाँ मै आ गयी अभी सोच ही रही थी कि अन्दर से उनकी एक बहू मुस्कुराती हुई आ गयी मैंने चैन की सांस ली | मैंने भी मुस्कुराते हुए पूछा “कैसी हो ?” वो कुछ बोलती इससे पहले ही चाची गुस्से में बोलीं “बांस अईसन ठाड़ रहबू की गोड़ छुअबू” ..वो बेचारी जल्दी से मेरे पैर छूने लगी मैंने उसे अपने पास बैठा लिया | चाची का चेहरा बदल गया था | दो मिनट बाद ही बोलीं चाची “जा, जा के उनहूँ के जगा द और कुछु ले आवा चाय पानी और हाँ गितवा आवत होई उनहूँ के खातिर कुछू बाना लीह बेचारी बिहाने के निकलल अब आवत होई |“ मैंने देखा बेटी का नाम आते ही उनके चेहरे से ममता टपकने लगी थी | मैंने बड़ी बेटी के बारे में पूछा तो चाची ने बड़े खुश होते हुए बताया कि वो तो दामाद के पास चली गयी | मैं उनके बदलते रूप को देख - देख कर घुट रही थी बहुओं से हमदर्दी होते हुए भी मै कुछ भी नही कर सकती थी | उनके बेटे अभी इतना नही कमा पा रहे थे कि अलग कहीं फ़्लैट ले कर रह सकें शायद इसी लिए वो ये सब सहने को मजबूर थीं | सब से मिल मिला के थोड़ी देर बाद मै घर आ गयी | घर आ कर फेस बुक खोला तो एक सुन्दर सी कविता बेटी पर मेरे सामने थी | मुझे फिर से चाची याद आ गयीं मैंने फेस बुक बंद किया और लिखने बैठ गई |
आज ना जाने क्यों कुछ अलग सा लिखने को दिल कर रहा है | नहीं, इसे अलग नही कह सकते ये तो घर-घर की कहानी है | मै हमेशा फेसबुक या किसी पत्रिका में या किसी भी बेबसाईट पर बेटियों या बहनों के लिए कविता पढ़ती हूँ | बेटियां घर की शोभा हैं, बेटियाँ परिवार में हर एक के दिल की धडकन हैं, बेटियों से घर की बगिया खिली है तो बेटिओं से घर रोशन है आदि आदि ..पर मेरा सवाल ये है कि अगर बेटियां इतनी प्यारी हैं तो बहुए क्यों नही ? हम बेटियों को तो इतना प्यार देते हैं उनकी हर जरुरत का ख्याल रखते हैं उनको सम्मान देते हैं, अपनी हर जरुरत को दर किनार करते हुए उनकी हर एक जरुरत पूरी करते हैं तो बहुओं की क्यों नही ? क्या वो किसी की बेटियां नहीं हैं क्या वो हमारा कर्जा खा कर हमारे घरों में प्रवेश करती हैं ? उनके आते ही भारी-भरकम चाभियों का गुच्छा उनके हवाले कर दिया जाता है हलाकि अब ये फिल्मों तक ही सीमित रह गया है | अब ये गुच्छा सासों की कमर में ही रहता है हाँ रसोई उनके हवाले कर दिया जाता है |
बेटियाँ चाहें कितनी भी बड़ी हों पर माता-पिता को बच्ची ही लगती हैं और अगर उसी के उम्र की बहू घर में है तो वो हम सब को क्यों बच्ची नही लगती ? उसके ऊपर हम अपने बच्चों की भी जिम्मेदारी क्यों डाल देतें हैं ? एक ही उम्र की बेटी और बहू दोनों में कितना बड़ा अंतर होता है, एक कोलेज़ जाती है तो दूसरी पढ़ी-लिखी होते हुए भी रसोई में पसीने बहाती है, क्यों ? हम माँ-बाप तो वही रहते हैं फिर हमारा नजरिया दूसरी बेटी के लिए क्यों बादल जाता है | वो बेटी जो हमारे बेटे का हाथ पकड़ के अपना सब कुछ पीछे छोड़ कर हमे अपनाती है और उसी के प्रति हमारा बर्ताव कैसा होता है ? ये सोचने का विषय है | बेटे को तो हम जी-जान से चाहते हैं और उसकी पत्नी को हम जीवन भर अपना नही पाते क्यों ?
अपनी बेटी पर ममता की गंगा बहा देने वाले दूसरे की बेटी के साथ इतना क्रूर कैसे हो जाते हैं कि उनको प्रताड़ित करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं | कहते हैं कि बेटियाँ कहीं भी रहें माँ-बाप से दिल दे जुड़ी रहती है ये सच् भी है पर क्या बहुएं हर दुःख-सुख में हमारा साथ नही निभातीं ? क्या कोई भी बेटी अपना घर अपने बच्चे छोड़ के हमारी सेवा के लिए हमारे पास आ कर दो-चार महीने रहती है, नही ना .. बहू ही करती है सब फिर भी हम उसे बेटी नही मानते, ठीक होते ही उसकी खामियां गिनने लगते हैं और अपनी बेटी दो दिन के लिए देखने आ गयी तो उससे बहू की हजार बुराइयां बताते हैं, ऐसा क्यूँ ?
मैंने कई घरों में बेटियों का बर्चस्व देखा है | घर में उन्ही की चलती है और घर की बहू दौड़-दौड़ के उनकी सेवा में लगी रहती है, दीदी ये,दीदी वो ...
अपनी बेटियों के लिए हम छोटा परिवार ढूंढते हैं जब की हमारे खुद के आधे दर्जन बच्चे होते हैं | अपनी बहुओं से हम चाहते हैं की वो घर का सारा काम करे सास-ससुर का ध्यान रखे, ननद की हर जरुरत का ख्याल रखे, देवर की जिम्मेदारी माँ की तरह निभाए पर अपनी बेटी जल्दी से जल्दी दामाद के साथ चली जाए यही चाहते हैं हम, ये दोहरापन क्यों ?
मैं मानती हूँ कि बेटियाँ हुत प्यारी होती है और ये सच् भी है कि बेटियाँ चाहे जितनी भी दूर रहें माता-पिता से जुड़ी रहतीं हैं पर हमारी बहुएं भी कुछ कम नही | अपने माता-पिता, भाई-बहन को छोड़ के हमारे घर आतीं हैं और आते ही हमारा हर सम्भव ख्याल रखना शुरू कर देती हैं, हर तरह से हमें खुश रखने की कोशिश करती हैं फिर हम उन्हें खुश क्यों नही रख पाते | हम बेटियों की इच्छाओं का कितना खयाल रखते हैं तो अपनी बहू की इच्छा का आदर क्यों नही करते | घर का काम बहू-बेटी दोनों मिल कर भी तो कर सकती है ना फिर सारा बोझ एक ही पर क्यों ?
आज जरुरत है मिसराइन चाची जैसे लोगों को अपना नजरिया बदलने की, बेटी और बहू के अंतर को खत्म करने की | अगर बेटी जॉब कर सकती है तो बहू क्यों नही और अगर बहू घर का काम कर रही है तो बेटी उसके काम में हाथ क्यों नही बटा सकती | बेटियों का वर्चस्व जब घर में बढ़ता है तब घर में क्लेश पैदा होता है | अगर हम दोनों को समान अधिकार देंगे और दोनों को एक समान स्नेह देंगे तो मुझे नही लगता कि कभी क्लेश की स्थिति उत्पन्न होगी और ये हमारे खुद के हाथ में हैं | बेटियों की तरह हमारी बहुएँ भी अनमोल हैं |
||मीना पाठक||
चित्र - गूगल
मिसराइन चाची ने ही गेट खोला मैंने उनका पैर छूआ वो भी मुझे देख कर खुश हो गईं, मै भी खुशी-खुशी अन्दर जा कर सोफे पर बैठ गयी | चाची ने आवाज लगाईं “अरे तनी आ के देखा लोगिन के आईल बा, तोहा लोगिन के सुत्ते के अलावा कउनो काम नइखे”.. आवाज देने के बाद मुझसे मुखातिब हो कर चाची कहने लगी “दिनवा भर सुत्ते ला लोग, का जाने केतना नींद आवेला ये लोगिन के”| मैंने हँस के कहा “ अरे चाची जी, सोने दीजिए, आप हैं ना मेरे पास, वो थक गयीं होंगी काम कर के |” चाची मुझे बहुओं का पक्ष लेते हुए देख कर थोड़ा तल्खी से बोली “कवन काम बा घरवा में, गैस पर खाना बनावे के बा, स्टील के बर्तन धोवे के बा और मिश्रा जी जमीनिया पर टायल लगवा दिहले बानी कऊन बड़ा मेहनत के काम करेला लोग, अरे काम त हम करत रहनी चूल्हा पर पुयरा झोंक-झोंक के खाना बनावत रहनी और फूल-पीतल के बर्तन माजत-माजत अऊर गोबर लीपत-लीपत कमरिये टूट जात रहे, तब्बो सास रानी के मुंह सीधा नाही रहे तौनो पे दुई चार ननद लोग धमकल रहत रहे लोग” चाची की बातें सुन के मुझे उलझन हो रही थी, चाची पुराण शुरू हो गया था,कहाँ से कहाँ मै आ गयी अभी सोच ही रही थी कि अन्दर से उनकी एक बहू मुस्कुराती हुई आ गयी मैंने चैन की सांस ली | मैंने भी मुस्कुराते हुए पूछा “कैसी हो ?” वो कुछ बोलती इससे पहले ही चाची गुस्से में बोलीं “बांस अईसन ठाड़ रहबू की गोड़ छुअबू” ..वो बेचारी जल्दी से मेरे पैर छूने लगी मैंने उसे अपने पास बैठा लिया | चाची का चेहरा बदल गया था | दो मिनट बाद ही बोलीं चाची “जा, जा के उनहूँ के जगा द और कुछु ले आवा चाय पानी और हाँ गितवा आवत होई उनहूँ के खातिर कुछू बाना लीह बेचारी बिहाने के निकलल अब आवत होई |“ मैंने देखा बेटी का नाम आते ही उनके चेहरे से ममता टपकने लगी थी | मैंने बड़ी बेटी के बारे में पूछा तो चाची ने बड़े खुश होते हुए बताया कि वो तो दामाद के पास चली गयी | मैं उनके बदलते रूप को देख - देख कर घुट रही थी बहुओं से हमदर्दी होते हुए भी मै कुछ भी नही कर सकती थी | उनके बेटे अभी इतना नही कमा पा रहे थे कि अलग कहीं फ़्लैट ले कर रह सकें शायद इसी लिए वो ये सब सहने को मजबूर थीं | सब से मिल मिला के थोड़ी देर बाद मै घर आ गयी | घर आ कर फेस बुक खोला तो एक सुन्दर सी कविता बेटी पर मेरे सामने थी | मुझे फिर से चाची याद आ गयीं मैंने फेस बुक बंद किया और लिखने बैठ गई |
आज ना जाने क्यों कुछ अलग सा लिखने को दिल कर रहा है | नहीं, इसे अलग नही कह सकते ये तो घर-घर की कहानी है | मै हमेशा फेसबुक या किसी पत्रिका में या किसी भी बेबसाईट पर बेटियों या बहनों के लिए कविता पढ़ती हूँ | बेटियां घर की शोभा हैं, बेटियाँ परिवार में हर एक के दिल की धडकन हैं, बेटियों से घर की बगिया खिली है तो बेटिओं से घर रोशन है आदि आदि ..पर मेरा सवाल ये है कि अगर बेटियां इतनी प्यारी हैं तो बहुए क्यों नही ? हम बेटियों को तो इतना प्यार देते हैं उनकी हर जरुरत का ख्याल रखते हैं उनको सम्मान देते हैं, अपनी हर जरुरत को दर किनार करते हुए उनकी हर एक जरुरत पूरी करते हैं तो बहुओं की क्यों नही ? क्या वो किसी की बेटियां नहीं हैं क्या वो हमारा कर्जा खा कर हमारे घरों में प्रवेश करती हैं ? उनके आते ही भारी-भरकम चाभियों का गुच्छा उनके हवाले कर दिया जाता है हलाकि अब ये फिल्मों तक ही सीमित रह गया है | अब ये गुच्छा सासों की कमर में ही रहता है हाँ रसोई उनके हवाले कर दिया जाता है |
बेटियाँ चाहें कितनी भी बड़ी हों पर माता-पिता को बच्ची ही लगती हैं और अगर उसी के उम्र की बहू घर में है तो वो हम सब को क्यों बच्ची नही लगती ? उसके ऊपर हम अपने बच्चों की भी जिम्मेदारी क्यों डाल देतें हैं ? एक ही उम्र की बेटी और बहू दोनों में कितना बड़ा अंतर होता है, एक कोलेज़ जाती है तो दूसरी पढ़ी-लिखी होते हुए भी रसोई में पसीने बहाती है, क्यों ? हम माँ-बाप तो वही रहते हैं फिर हमारा नजरिया दूसरी बेटी के लिए क्यों बादल जाता है | वो बेटी जो हमारे बेटे का हाथ पकड़ के अपना सब कुछ पीछे छोड़ कर हमे अपनाती है और उसी के प्रति हमारा बर्ताव कैसा होता है ? ये सोचने का विषय है | बेटे को तो हम जी-जान से चाहते हैं और उसकी पत्नी को हम जीवन भर अपना नही पाते क्यों ?
अपनी बेटी पर ममता की गंगा बहा देने वाले दूसरे की बेटी के साथ इतना क्रूर कैसे हो जाते हैं कि उनको प्रताड़ित करने के लिए किसी भी हद तक चले जाते हैं | कहते हैं कि बेटियाँ कहीं भी रहें माँ-बाप से दिल दे जुड़ी रहती है ये सच् भी है पर क्या बहुएं हर दुःख-सुख में हमारा साथ नही निभातीं ? क्या कोई भी बेटी अपना घर अपने बच्चे छोड़ के हमारी सेवा के लिए हमारे पास आ कर दो-चार महीने रहती है, नही ना .. बहू ही करती है सब फिर भी हम उसे बेटी नही मानते, ठीक होते ही उसकी खामियां गिनने लगते हैं और अपनी बेटी दो दिन के लिए देखने आ गयी तो उससे बहू की हजार बुराइयां बताते हैं, ऐसा क्यूँ ?
मैंने कई घरों में बेटियों का बर्चस्व देखा है | घर में उन्ही की चलती है और घर की बहू दौड़-दौड़ के उनकी सेवा में लगी रहती है, दीदी ये,दीदी वो ...
अपनी बेटियों के लिए हम छोटा परिवार ढूंढते हैं जब की हमारे खुद के आधे दर्जन बच्चे होते हैं | अपनी बहुओं से हम चाहते हैं की वो घर का सारा काम करे सास-ससुर का ध्यान रखे, ननद की हर जरुरत का ख्याल रखे, देवर की जिम्मेदारी माँ की तरह निभाए पर अपनी बेटी जल्दी से जल्दी दामाद के साथ चली जाए यही चाहते हैं हम, ये दोहरापन क्यों ?
मैं मानती हूँ कि बेटियाँ हुत प्यारी होती है और ये सच् भी है कि बेटियाँ चाहे जितनी भी दूर रहें माता-पिता से जुड़ी रहतीं हैं पर हमारी बहुएं भी कुछ कम नही | अपने माता-पिता, भाई-बहन को छोड़ के हमारे घर आतीं हैं और आते ही हमारा हर सम्भव ख्याल रखना शुरू कर देती हैं, हर तरह से हमें खुश रखने की कोशिश करती हैं फिर हम उन्हें खुश क्यों नही रख पाते | हम बेटियों की इच्छाओं का कितना खयाल रखते हैं तो अपनी बहू की इच्छा का आदर क्यों नही करते | घर का काम बहू-बेटी दोनों मिल कर भी तो कर सकती है ना फिर सारा बोझ एक ही पर क्यों ?
आज जरुरत है मिसराइन चाची जैसे लोगों को अपना नजरिया बदलने की, बेटी और बहू के अंतर को खत्म करने की | अगर बेटी जॉब कर सकती है तो बहू क्यों नही और अगर बहू घर का काम कर रही है तो बेटी उसके काम में हाथ क्यों नही बटा सकती | बेटियों का वर्चस्व जब घर में बढ़ता है तब घर में क्लेश पैदा होता है | अगर हम दोनों को समान अधिकार देंगे और दोनों को एक समान स्नेह देंगे तो मुझे नही लगता कि कभी क्लेश की स्थिति उत्पन्न होगी और ये हमारे खुद के हाथ में हैं | बेटियों की तरह हमारी बहुएँ भी अनमोल हैं |
||मीना पाठक||
चित्र - गूगल
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