Monday, September 30, 2013

जीवन के रेगिस्तान में
















जाने कितने बसंत
शीत,पतझड़, सावन
आये गये
तपती,भीगती,ठिठुरती
मुरझाती पर फिर भी
चलती रही अनवरत
हाँफती,दौड़ती,पसीजती
डोर अपनी साँसों की पकड़े
कोलाहल अंतर का समेटे
मूक, निःशब्द बस्
अपने काफिले के साथ
बढ़ती ही गई जीवन के पथ पर !!

अपनी साँसें संयत करने को
रुकी इक पल को
पीछे मुड़ कर देखा जो
छोड़ गये थे सभी मुझको
मेरे पीछे था अब सुनसान
आगे वियावान
नीचे तपती रेत
ऊपर सुलगता आसमान
बीच में झुलसती मैं
अकेली जीवन के रेगिस्तान में ||
  *****

7 comments:

  1. जीवन का संघर्ष बयाँ करती रचना... बेहतरीन अभिव्यक्ति !

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  2. दिल को छु गय हेर शब्द

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  3. यही जीवन है नारी का... बहुत सुंदर रचना मीना

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  4. आपकी इस उत्तम रचना को हिंदी बलोगेर्स चौपाल में शामिल किया गया हैं http://hindibloggerscaupala.blogspot.com/शुक्रवार} 4/10/2013
    कृपया अव्लोकानार्थ पधारे .धन्यवाद

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