नित बैठी रहती हूँ उदास
हर पल आती पापा की याद
सावन में सखियाँ जब
ले कर बायना आती हैं
नैहर की चीजें दिखा-दिखा
इतराती हैं,
तब भर आता है दिल
मेरा
पापा की कमी रुलाती है ।
कहती हैं जब, वो सब सखियाँ
पापा की भर आयीं अंखिया ।
मेरे बालों को सहलाया था
माथा चूम दुलराया था ।
सुनती हूँ जब उनकी बतिया
व्यकुल हो गयी मेरी निदिया ।
मन अधीर हो जाता है
पापा को बहुत बुलाता है
पर खुश देख सखी को
हल्का करतीं हूँ मन को
सज जाती है होठो पर
यादों की पीर
नैनो से आज फिर छलक
आयी
बहती सी नीर
जीवन का रंग कितना
बदल जाता है ।
पापा बिन सावन का
इक तीज-त्यौहार न भाता है ||
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