Thursday, September 26, 2013

माँ तुम्हारा कर्ज चुकाना है

















नौ महीने
अपनी कोख में सम्भाला
पीड़ा सहकर
लायी मुझे दुनिया में
जानती हूँ
बहुत दुःख सह, ताने सुन
जन्म दिया मुझे

मैंने सुना था, माँ!
जब बाबा ने तुम्हें धमकाया था
कोख में ही मारने का
दबाव बनाया था
दादी ने क्या-क्या नही सुनाया!
पर तुम!
न डरी, न झुकी
मुझे जन्म दिया

हमारे होते भी
तुम निपूतनी कहलाई
पर तुम्हारे
प्यार में कमी न आई

तुम्हारे आँसुओं का
मोल चुकाना है
बेटी के जन्म से
झुका तुम्हारा सिर
गर्व से उठाना है
माँ! तुम्हारा कर्ज चुकाना है ||

मीना पाठक
चित्र -- साभार गूगल 

Friday, September 20, 2013

कराहती ज़िंदगी













रात के अँधेरे में कराहती हुई सुलोचना करवटें बदल रही थी | शरीर का कोई भी हिस्सा ऐसा नही था जहाँ चोट से काला निशान ना पड़ा हो जिस करवट भी सोती दर्द से कराह उठती थोड़ी देर बाद उठ के बैठ गयी और सोचने लगी "आखिर कब तक सहती रहूंगी ये सब प्रताड़नायें, झूठे आरोप, अब तो हद हो गयी है बर्दास्त के बाहर हैं मेरे, नहीं होता ये सब सहन अब, तो क्या करूं कहाँ जाऊँ, मायके से विदा होते समय यही तो कहा था माँ ने कि अब वो ही तुम्हारा घर है, यहाँ से डोली में जा रही हो वहाँ से अर्थी पर निकलना |" सुलोचना के सामने अंधेरा ही अंधेरा था,कहाँ जाए, बहार भी तो भेड़ियों का झुण्ड है, आत्महत्या कर सकूँ इतनी भी हिम्मत भगवान् ने नही दी मुझे, तो कहाँ जाऊं | कुछ समझ में नहीं आ रहा था और अब इस इंसान के साथ जीना मुश्किल था जो उसे इंसान नही जानवर समझता था |अचानक कुछ सोचते हुए उसकी आँखे चमक उठी और वो जोर जोर से हँसने लगी, अपने बाल नोचने लगी, अपना सिर दीवार पर जोर-जोर से मारने लगी | शोर सुन के घर के सभी लोग उसके कमरे में आ गए | जो सुलोचना सब कुछ चुपचाप सह लेती थी और बंद कमरे में आंसू बहाती थी उसी सुलोचना का ये रूप देख कर सभी दंग थे |
दो दिन बाद ही सुलोचना के दरवाजे पर एक एम्बुलेंस आ कर खड़ी हो गयी, उसमे से कुछ लोग उतर कर सुलोचना के कमरे की तरफ बढ़ गए | एम्बुलेंस पर लिखा था "मानसिक रूप से बिक्षिप्त रोगियों के लिए |"
|मीना पाठक|

Friday, September 13, 2013

हिन्दी हमारी मातृभाषा







हिन्दी हमारी मातृभाषा
हिन्दी हमारा मान है
हिन्दी से हम हिंदी हैं
देश हिन्दोस्तान है
भूल बैठे फिर क्यूँ हिन्दी हम
अंग्रेजी अपनाया है ...
इकदूजे से बोलचाल का
माध्यम उसे बनाया है
अंग्रेजों की अंग्रेजी अब भी
हम पर हावी है
अपनी हिन्दी को हमने
ही कहा बेचारी है
चलो उठो संकल्प करो
हिन्दी में लिखना पढना है
हिन्दी का गौरव सम्मान
बाइज्जत वापिस करना है
अपने नौनिहालों को हिन्दी
का पाठ पढ़ाएंगे
हिन्दी हमारी मातृभाषा है
ये घूटी पिलायेंगे
वही बड़े हो कर कल
हिन्दी का मान बढ़ाएंगे
हिन्दी का खोया सम्मान
उसे वापिस दिलाएंगे ||

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ !! 

||मीना पाठक||

चित्र -- गूगल
 



 



नजरिया हिन्दी पर

कल से ही तबियत कुछ ठीक नहीं थी इस लिए आज सुबह सुबह ही हॉस्पिटल के लिए निकल गई  वहाँ पहुँची तब तक भीड़ बहुत हो चुकी थी, अपना कार्ड  जमा कर के मैं आराम से बैठ गई | किसी को छींक भी आ गयी तो चलो दावा ले आते हैं, आखिर एयर फ़ोर्स का हस्पताल है फ्री में दवा मिल जाती है
तो लाभ क्यों न लिया जाय, शायद इसी सोच के चलते यहाँ रोज इतनी भीड़ रहती है और बेचारे जो सच में बीमार हैं उनको लंबा इन्तजार करना पड़ता है अपने न. का | करीब एक घंटे बाद मेरा नाम पुकारा गया मैंने जा कर अपना पर्चा लिया, देखा तो ४६ न. मिला था
मैंने सोचा गया आज का पूरा दिन , खैर .. इतनी दूर से आई थी तो सोचा जितना भी समय लगे डा. को दिखा कर ही जाऊँगी सो डा. के केबिन के सामने लगी भीड़ का हिस्सा मैं  भी बन गयी | वहाँ बैठ कर अपने न. का इन्तजार करने लगी | आज का दिन ही मेरे लिए ख़राब था डा. साहिबा
दो मरीज देखती तब तक कोई इमरजेंसी आ जाती और वो उठ कर चली जाती | कोई अपने न. के इन्तजार में ऊंघ रहा था तो कोई अपनी राय दे रहा था " एक ही डा. दोनों काम क्यों देख रही हैं, इमरजेंसी के लिए दूसरा डा. क्यों नही है" कुछ महिलायें एयर फ़ोर्स को कोस रहीं थीं "अरे ! फ्री
में थोड़े ही दवा कर रहे हैं, हम लोगो ने अपना बेटा दिया है, ये लोग हमारे बच्चों से जब चाहे जितना चाहे काम लेते हैं तब ये लोग हमें दवा  की सुविधा दे रहे हैं कोई एहसान नही कर रहे हैं हमारे ऊपर|" मैं  चुप चाप सब देख और सुन रही थी |मेरे सर में कुछ दर्द सा महसूस
हुआ और मैं  वहाँ से उठ कर अन्दर हाल में चली गयी, जो कि हम मरीजों के लिए ही बनाया गया था कि हम आराम से वहाँ बैठ कर अपने न. का इंतजार कर सकें | मैंने हाल में अन्दर जा कर इधर-उधर नजर दौड़ाई तो खिड़की के पास कूलर के सामने एक कुर्सी खली पड़ी थी, बाकी पूरा हाल भरा हुया था
मै जा कर कूलर के सामने बैठ गयी , ठंडी ठंडी हवा का असर हुआ और मुझे झपकी आ गयी | थोड़ी देर बाद बच्चे के रोने की आवाज सुन कर मैं चौंक पड़ी आँखे खोल कर देखा तो मेरी बगल वाली कुर्सी पर एक महिला करीब एक महीने के बच्ची को चुप कराने में लगी थी | बच्ची फूल सी नाजुक
और मलमल सी कोमल थी उसके होठ गुलाब की पंखुड़ियों जैसे लाल थे, मेरा दिल किया कि एक बार उसे छू लूं पर मैंने ऐसा किया नहीं मेरी नींद टूट चुकी थी मैंने धीरे धीरे अपने अगल बगल बैठी महिलाओं से बातें करना शुरू  किया | मैं भी क्या करती बोर जो हो रही थी तो जल्दी ही
हम महिलाओं का एक ग्रुप बन गया हम सभी एक दूसरे के बारे में पूछने लगीं  और अपने बारे में बताने लगीं कि कितने बच्चे हैं,कौन - कौन  सी कक्षा में पढ़ते हैं और किसके पति कहाँ-कहाँ पोस्टेड हैं आदि आदि |घर परिवार की बात होते होते बात बच्चों की  शिक्षा पर आ कर अटक गई | सभी के बच्चे
अंग्रेजी माध्यम से पढ़ रहे थे और सभी महिलाएँ अपने बच्चों के स्कूल के नाम बढ़-चढ़ के बता रहीं थीं | हम लोगो की  बाते वहाँ  बैठे पुरुष भी बड़े ध्यान से सुन रहे थे |एक बुजुर्ग महिला जो बड़ी देर से हमारी बाते सुन रही थी बोली "आज कल कोई भी माता-पिता अपने बच्चों को हिंदी
माध्यम से नहीं पढ़ाना चाहते,  सब अपना स्टेटस मेंटेन करने के लिए बड़े - बड़े अंग्रेजी स्कूलों में अपने बच्चों
 का दाखिला करवाते हैं और अपनी जेब हल्की करते हैं , जहाँ न तो नैतिक शिक्षा दी जाती है न सामाजिक, जिसके फलस्वरूप आज समाज में कितने अपराघ बढ़ गए हैं, शहरों में माता पिता अकेले रहने लगे हैं , बेटे उन्हें पैसे भेज कर अपनी जिम्मेदारी की पूर्ती कर लेते हैं | शिक्षा का पूरी तरह से व्यवसायीकरण हो गया है , बच्चों को सिर्फ पैसे कमाने की सीख दी जा रही है, नैतिक मूल्यों और संस्कारों से इनका कोई लेना देना नहीं है |
वो महिला साँस ले के फिर बोली गार्जियन बड़े गर्व से बताते हैं कि मेरा बच्चा सभी विषय में अब्बल है पर हिंदी में कमजोर  है कितने   शर्म की बात है | हिंदी हमारी मातृभाषा  है और आज के बच्चे उसी में कमजोर हैं ,और माता पिता भी खुश हैं कि मेरा बच्चा सिर्फ हिंदी में कमजोर है, चलेगा पर अगर अंग्रेजी में बच्चा कमजोर हो तो ये नहीं चलेगा उसे ट्यूशन लगवा दिया जाएगा |अपने ही देश में हिंदी के से इतना भेद भाव ?
वो महिला इतना बोल के हम सब का चेहरा देखने लगी, शायद वो अपने प्रश्न का जवाब चाहती थीं | वहां सभी बगलें झाँकने लगे क्यूँ कि थोड़ी देर पहले ही सभी महिलायें अपने अपने बच्चों के इग्लिश मीडियम स्कूलों के नाम बड़े गर्व से बता रहीं थीं, सब चुप थीं मैं भी चुप हो कर बड़े गौर से सभी के चेहरे पढ़ रही थी तब तक वो बुजुर्ग महिला फिर से बोल पड़ीं क्या हिंदी मीडियम स्कूलों में अंग्रेजी की  शिक्षा नही दी जाती है ? प्रश्न करने के बाद जवाब भी उन्होंने खुद ही दे दिया " दी जाती है  और साथ साथ सामाजिक और नैतिक शिक्षा भी दी जाती है , मेरे दो बेटे हैं और वो दोनों हिंदी माध्यम से पढ़े हैं एक डा. है और दूसरा इंजीनियर , बड़े गर्व से महिला ने बताया, मुझे भी सुन के बहुत अच्छा लगा उस महिला की बात से कही न कही मैं भी  सहमत थी क्यों कि मेरा एक बेटा हिंदी माध्यम से पढ़ कर प्रशासनिक सेवा में था  तो दूसरा अंग्रेजी माध्यम से १२वी. में पढ़ रहा था दोनों के अंतर को मै खुद भी देख रही थी, हिन्दी में कम न. आने पर जब भी मैं उसे डांटती, वो बोलता कि "अरे मम्मी हिंदी भी कोई सब्जेक्ट है, तो मैं  उसे समझाती थी कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, उसमे तो तुम्हारे पूर के पूरे न. आने चाहिए तो बेटा उल्टे मुझे ही समझा देता कि मम्मी आप भी किस जमाने में जी रही हो
आज कल जिसे अंग्रेजी नही आती उसे कोई नहीं पूछता आप बहार निकलो तब जानो ना, हर जगह इग्लिश की डिमांड  है, सच ही तो बोल रहा था बेटा | एक सेल्समैन भी दरवाजे पर आता है तो वो अंग्रेजी में ही बोलता है |आज की पीढ़ी की ये सोच है हिंदी के प्रति, दुःख होता है कि अपनी मातृभाषा की दुर्दशा है पर इसका जिम्मेदार कौन है क्या ये हमारी जिम्मेदारी नही कि बच्चों को इस बात की गंभीरता समझाई जाय कि जैसे अंग्रेजी पढना जरूरी है वैसे ही हिंदी भी बहुत जरूरी है | हम जब किसी बच्चे को फर्रा टे ेसे अंग्रेजी बोलते देखते हैं तो घर में आ कर अपने बच्चों से बोलते है कि फला बच्चा कितनी अच्छी अंग्रेजी बोल रहा था और एक तुम हो
कि इतना पैसा खर्च करने के बाद भी अंग्रेजी बोलनी नहीं आती तुम्हे हर समय हिंदी में बात करते हो .. अपने बच्चे को हिंदी की  अहमियत समझाने के बजाय हम उसे अंग्रेजी पर ज्यादा ध्यान देने के लिए जोर देते हैं | हमने ही तो हिंदी को बेचारी बना रखा है , हिंदी बोलने में लिखने में और हिंदी में हस्ताक्षर करने
में हमें शर्म आती है तो हिंदी की  दुर्दशा ्क्यों  न हो | अपने ही घर में हिंदी अलग थलग पड़ी है और इसके जिम्मेदार हम ही हैं | हमें अपने बच्चों में  हिंदी के प्रति सम्मान को जगाना होगा ये समझाना होगा कि हिंदी बोलना और लिखना हमारे लिए गौरव की बात है | हिंदी मात्र एक विषय नही हिंदी हमारा मान है | कहते हैं कि घर बच्चे की प्रथम पाठशाला है और माँ प्रथम गुरु तो बच्चे के अन्दर हिंदी के प्रति सम्मान की भावना विकसित करने की पहली जिम्मेदारी हम माँओं की ही बनती है | मैं अंग्रेजी शिक्षा की विरोधी नहीं, भाषा तो कोई भी हो एक दुसरे से जोड़ने का काम करती है पर अपनी भाषा को नकारना या उसे हल्का समझना कहाँ की समझदारी है | दुनिया के हर देश में अपनी - अपनी भाषा बोली जाती है यहाँ तक कि वहां के सरकारी कार्यालयों में भी वहां की ही भाषा में काम होता है पर हमारे यहाँ सरकारी काम भी विदेशी भाषा में होता हैं | यही सब सोचते हुए मैंने एक लम्बी सी साँस ली और उठ कर हाल के बाहर आ गयी | उस महिला का न. शायद आ चुका था , मेरी नजरे उस महिला को ढूंड रही थी पर वो कहीं दिखाई नहीं पड़ी मुझे | मैंने दरवाजे के ऊपर देखा ४० न. चल रहा था मैंने चैन की साँस ली कि थोड़ी देर में मेरा न. आने वाला है , मैं लाइन में खड़ी हो गयी तब तक
जोर से  सायरन की आवाज सुनाई दी एयर फ़ोर्स की वर्दी में सजे सभी छोटे बड़े कर्मचारी दौड़ पड़े, शायद फिर से कोई इमरजेंसी आ गयी थी  |५ मिनट बाद ही डा. साहिबा भी अपनी केबिन से निकल कर उसे देखने चली गयीं | मैं लाइन से हट कर फिर से कुर्सी पर  बैठ गयी अपने न. के इन्तजार में ||


मीना पाठक

Thursday, September 12, 2013

बेटों पर भी निगाह रखना जरूरी

वो बार- बार घड़ी देखती और बेचैनी से दरवाजे  की तरफ देखने लगती  |५ बजे ही आ जाना था उसे अभी तक नही आया , कोचिंग के टीचर को भी फोन कर चुकी उन्होंने तो ४:३० बजे ही छोड़ दिया था पर अभी तक ........
सरोज का दिल बैठा जा रहा था | उसे यूँ परेशान देख कर उसकी सास मुंह बना कर बोली "अरी महारानी बेटा है वो तेरा कोई बेटी ना है जो तू इतनी परेशान है |" सरोज बोली " माँ जी यही उम्र है बिगड़ने और बनने  की इस समय अगर निगाह नहीं रखूँगी तो समय हाथ से निकल जाएगा | आप लोगो ने जीवन भर लडकियों पर रोक लगाया ना जाने कितनी पाबंदियां  लगाई, उन के ऊपर निगाह रखा की वो कब क्या कर रही है, कहाँ जा रहीं हैं और लड़कों को सर पर चाढाया पर अब समय आ गया है की वो सारी  पाबंदियां बेटो पर भी लगाई जाए, उन पर भी निगाह रखा जाय की वो कब और कहाँ  जा रहें हैं क्या कर रहे है,
किस किस के साथ उनका उठाना बैठना है | शाम तक घर में आ जाना है और रात में उन्हें घर से बाहर नही निकलना है ये सारी पाबंदियां  उन पर भी होनी चाहिए | गेट पर खट की आवाज सुन कर सरोज दौड़ कर गेट खोलने आई देखा तो हाथ में फ़ाइल लिए बेटा कुछ डरा हुआ सा सायकिल लिए खड़ा था | सरोज वहीँ शुरू हो गयी " कहाँ थे अभी तक, कोचिंग तो तुम्हारी कब की छूट गयी थी फिर तुम इस समय तक क्या कर रहे थे |  बेटा बोला मम्मी प्रोजेक्ट की फ़ाइल बना रहा था रोहित के साथ उसी के घर में देर लग गयी, उसके पापा मुझे छोड़ने आये है आप चाहो तो उनसे पूछ लो  | सरोज ने देखा स्कूटर पर एक महाशय बैठे हुए थे उन्होंने एक पैर ज़मीन पर टिका रखा था | उन्होंने बताया आप परेशान ना हो ये बच्चा मेरे घर पर ही था, देर हो गयी थी इसी लिए मैं खुद इनके साथ आया हूँ  | ये सुन कर सरोज को तसल्ली हुई | बेटे को हिदायत देती हुयी बोली आगे से ऐसी गलती न हो मुझे पता होना चाहिए कि तुम कहाँ हो और किसके साथ हो | बेटे ने सिर हिला कर हामी भरी तब जा कर सरोज ने उसे अन्दर आने का रास्ता दिया |



मीना पाठक

Friday, September 6, 2013

कोमल एहसास

याद है !!
जब तुम्हारा जन्म हुआ था
एक नर्म तौलिये में लपेट
मुझे तुम्हारी एक
झलक दिखलाई थी
तुम्हे देखते ही
भूल गयी थी दर्द सारा
खों गयी थी
गुलाब की पंखुड़ियों जैसी सूरत में
कितना प्यारा था स्पर्श तुम्हारा
नर्म
बिलकुल रुई के फाहों जैसा
खुश थी छू के तुम्हे

तुम मद मस्त नींद में
लग रहा था
लम्बा सफ़र तय किया है तुमने
कितने दिनों के थके हो जैसे

जब तुमने
आँखें खोली पहली बार
इस नयी दुनिया को देखने की कोशिश
तुम्हारी काली चमकदार आँखें
ढूंढ रही थीं कुछ
मै हर्षित देख रही थी
तुम्हे आँखें घुमाते हुए
जब तुमने
अपना सिर घुमा के
करीब देखा मुझे
एक हल्की मुस्कान के साथ
आँखे बंद कर के सो गये
जैसे तुमने पा लिया था उसे
जिसे ढूंढ रहे थे
मै तुम्हे नींद में मुस्कुराते देख
ऐसे तृप्त हो गयी थी जैसे
बंजर जमीन हो गई हो हरी-भरी
पतझड़ के बाद आ गयी हो बसंत ऋतु
पड़ी हो सूखी धरती पर बरखा की फुहार
आँचल से फूट पड़ी ममता की धार 
तुम्हे अपने आँचल से ढक
कलेजे से लगा कर
मै भी सो गई थी !!....

आज तेरी छवि है मेरे सामने
पर कलेजे से लगाने को तरसती हूँ
आँखों में आँसूओं का समंदर,
हृदय में ममता की लहरें
दूर तु मुझसे और मै तुझसे
मिलेगा कभी ना कभी
यही आस,
यही उम्मीद लिए बैठी हूँ ||!!!

||मीना पाठक ||

चित्र-- साभार गूगल

Thursday, July 18, 2013

जल














जल

इस संसार में समस्त जीवों, पशुओं और पौधे सब को पानी की आवश्यकता है | प्राचीन काल में लोगों ने बस्तियाँ कस्बा, नगर, गाँव, नदियों के किनारे ही बसाये थे ताकि वो जो फसल या पेड़ पौधे लगाएं उसको नदियों से पर्याप्त जल मिलता रहे | पर उन्होंने नदियों की ज़मीन नहीं हथियाई, प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नही किया |

जल ही जीवन है | पर जब यही जल प्रलय बन के टूट पड़े तो न जाने कितने जीवन लील लेता है | जब ये जल का जलजला आता है तब अपने साथ तबाही और बर्बादी ले कर आता है चारों तरफ़ चीख पुकार ..इधर-उधर भागते हुए लोग और अपनों को अपने सामने ही जल समाधि लेते हुए देख कर भी कुछ ना कर पाने को विवश लोग और जब जाता है तब अपने पीछे छोड़ जाता है लाशों के ढेर, उजड़ी हुई बस्तीयां, नगर और गाँव, रोते बिलखते लोग | बसे बसाये नगर शमशान में तब्दील हों जाते है |
किसी भी चीज की अधिकता विनाशकारी है नदिया जब तक अपनी मर्यादा में बहें तभी तक जल जीवन है पर नदी में जल का उफान आते ही वो अपने किनारों को छोड़ बाहर आ जाती है और तभी आता है जल प्रलय |
अखिर इसका जिम्मेदार कौन है | हमारी एक इंच ज़मीन कोई ले ले तो हम उसे पाने के लिए ना जाने क्या क्या करते हैं पर हमने इन नदियों की कितनी ज़मीन हड़प ली फिर भी ये सब कुछ सहती हुई शांत बहती रही और हमें जीवन देती रही पर आखिर कब तक वो भी कब तक सहती हमने तो अति ही कर दी | उसके सीने पर होटल, मकान से ले कर दूकान तक बना डाले और उसी की ज़मीन पर जम कर पैसे बनने लगे | हम तो अपनी जेबे भरते रहे पर उसके दिल में कितने छेद हुए ये नही देख पाए और जब वो दर्द नहीं सह पायी तब उसने तोड़ दी सारी मर्यादा और गुस्से से उफनाती हुई पूरे हक से अपनी ज़मीन वापस ले ली | उसने तो अपना हक ही लिया जो हमने उससे छीना था | असली दोषी कौन है हम या वो नदी जिसे सिकुड़ने पर हमने मजबूर कर दिया था | आज उसने फैलाव लिया तो सब छिन्न - भिन्न, चीख पुकार, हाहाकार और विनाश के सिवा कुछ भी हाथ नही लगा |
नदियाँ अपनी मर्यादा में रहें इसके लिए हमे खुद मर्यादा में रहना होगा | उनकी ज़मीन पर अवैध निर्माण, ना जाने कितने जल बिद्दुत परियोजनाएं. बाँध और गंदे नालों का पानी उसमे निरने से रोकना होगा | वृक्ष लगाने होंगे जो विकाश के नाम पर कटते जा रहे हैं | अगर हम अपनी सीमाएं नहीं तोड़ेंगे तो नदियां भी अपनी सीमा में ही बहेंगी | प्रकृति हमें देती है हम से कुछ लेती नही, हम ही प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते हैं और उसका खामियाजा खुद ही भुगतते हैं और सारा दोष प्रकृति के सिर मढ़ देते हैं | अलखनंदा व मंदाकिनी ने अपना रौद्र रूप दिखा कर हमें सचेत किया है, हम अब भी ना चेते तो भगवान ही मालिक है |

||मीना पाठक||

चित्र - गूगल  

Tuesday, July 9, 2013

चाह बस् इतना कि
















चाह नही मुझे कि..
मिलूँ तुमसे बागों व बहारों में

चाह नही मुझे कि..
मिलूँ तुमसे नदी के किनारों पे

चाह नही मुझे कि..
तुम छेड़ो बंसी की तान और
झूमती आऊँ मै

चाह नही कि..
तुम बैठो कदम्ब की डाल और
नाच के रिझाऊँ मै

चाह नही कि..
थामूं तुम्हारा हाथ और
निहारूँ तुम्हारी आँखों में


चाह बस इतनी कि..
हे ! नाथ
छू लूँ तुम्हारे
पद पंकज और
हाथ हो तुम्हारा मेरे सिर पर ||

मीना पाठक

Monday, June 17, 2013

साधन मात्र



जब भी राकेश देर रात तक काम करते हैं रानी कितना ख्याल रखती है | जब तक राकेश काम करते हैं रानी दोनों बच्चों को मुंह पर उंगुली रख कर चुप कराती रहती है | बीच-बीच में उनको चाय बना के दे आती है | राकेश भी उसे बुला के सामने बैठा लेते हैं –“तुम सामने रहती हो तो काम जल्दी हो जाता हैये बोल कर कितना लाड दिखाते हैं | जब तक वो काम करते रहते है रानी भी जागती रहती है फिर सुबह जल्दी उठ कर बच्चों को तैयार कर के स्कूल भेज देती है | बच्चे अगर जोर से बोलते हैं तो उन्हें चुप करा देती है पापा रात देर से सोये है शोर मत करो बच्चे भी चुप हो जाते हैं | राकेश ९ बजे सो कर उठते हैं तब तक उनका नाश्ता और लंच दोनों तैयार कर के दे देती है और वो ऑफिस चले जाते हैं |
 हर सम्भव ख्याल रखती है, उनके जूते,कपड़े,उनकी सेविंग किट यहां तक कि उनकी फाईलें भी वही संभालती है | पर जब भी वो कुछ पढ़ने या लिखने बैठती है तो राकेश को जाने क्या हो जाता है और उनका व्यवहार बहुत रूढ़ हो जाता है |
आज भी वो सब काम खत्म कर के अपनी कविता लिख रही थी तो राकेश ने कितनी जोर से डांट दिया
–“जब देखो ये फालतू का काम ले के बैठ जाती हो मेरे लिए तो समय ही नही तुम्हारे पास, लाइट बंद करो सोऊँगा नही तो कल ऑफिस में सिर दर्द होगा तुम्हे क्या घर में पड़ी सोती रहोगी”|
रानी अपनी डायरी और कलम समेटती हुई दुखी मन से उठती है और आल्मारी में रख देती है | एक यही काम तो वो खुद की खुशी के लिए करती है बाकी सारा दिन तो सब के लिए जीती है और बस इतनी सी बात राकेश को बर्दास्त नही होती |
रानी लाइट बंद कर के लेट जाती है और अपने आँसू पोंछते हुए सोचने लगती है कि उसने तो कभी नही कहा
मुझे माइग्रेन है मैं देर रात तक तुम्हारे साथ जागती हूँ तो अगले दिन मुझे माइग्रेन का अटैक पड़ जाता है | मै किस तरह दवा खा के घर का और बच्चों का काम करती हूँ तुम्हे क्या पता तुम तो शाम को आते हो और मेरा सूजा हुआ चेहरा देखते हो तो यही कहते हो कि - " अभी सो कर उठी हो क्या जो तुम्हारा चेहरा इतना सूजा हुआ है" अब मैं तुम्हे क्या बताऊँ कि मेरा चेहरा सोने से नही माइग्रेन की वजह से सूजा हुआ है | अंघेरे में रानी अपने आँसू बार बार पोंछ लेती है इतने में राकेश का भरी भरकम हाथ उसके उपर आ
जाता है और वो उस हाथ के नीचे अपने आप को दबा हुआ महसूस करती है | मैं क्या हूँ राकेश के लिए सिर्फ उनकी जरूरतों को पूरा करने का एक साधन मात्र बस ……..और कुछ नही |
राकेश जान ना जाएं इस लिए रानी धीरे से अपनी आँखों को पोंछ के सुखा देती है |



मीना पाठक 

अपने पापा के नाम एक पत्र







                                              एक पत्र अपने पापा के नाम  


आदरणीय पापा जी

                          सादर चरणस्पर्श



मैं यहाँ पर कुशल पूर्वक रहती हुई ईश्वर से प्रार्थना करती हूँ कि आप जहाँ कहीं भी हों सकुशल हों |
पापा आप कैसे हैं ? इतने दिनों से आप की कोई खबर नही | आप की बहुत याद आती है पापा. आप हमें छोड़ कर क्यों चले गये ? आपने एक बार भी नही सोचा की माँ आप के बिना अकेले कैसे रहेगी, हमसब भाई-बहनों को वो अकेले कैसे पालेगी, एक बार तो सोचा होता आप ने पापा | मैं ही कुछ बड़ी थी बाकी दोनों बहने छोटी थी और भाई तो मात्र ग्यारह महीने का था, जब आप हमें छोड़ गये थे |
पापा अब देखिये ना आ कर कि हम सब बड़े हों गये हैं और समझदार भी | बस् एक बार आप आ जाइये पापा, मेरी बहुत तमन्ना है कि एक बार फिर से आप मुझे अपने सीने से लगा कर मेरे सिर पर अपना स्नेह भरा हाथ रख दें | बहुत याद आती है आप की पापा, कोई भी दिन आप की याद के बिना नही गुजरता है | अकेले छुप-छुप कर रोती हूँ, अगर बच्चों ने देख लिया तो मुंह घूमा के आँसू पोंछ लेती हूँ |
पापा .. मुझे आप की सब बाते याद हैं, जब माँ ने आप से एक अच्छी साड़ी की फरमाइश  की थी तब आप ने कितने प्यार से माँ को समझा दिया था कि
तुम जैसी भी साड़ी पहन लो बहुत अच्छी लगती हों और माँ मुस्कुरा के रह गई थी | वो बात भी याद है मुझे जब चाचा के असमय सफ़ेद हुए बालों को कलर लगा के काला किया था आप ने और फिर उनके बालों को धो कर एक-एक बाल हटा-हटा कर आप देख रहे थे कि कहीं कोई बाल सफ़ेद तो नही रह गया | इंटरव्यू में ओवर एज कह के निकाल ना दिया जाए चाचा ये डर था आप के मन में इसी लिए आप ने ये सब किया था और आप के प्रयास से चाचा को सरकारी नौकरी मिल गयी थी | अब तो वो भी रिटायर होने वाले है | मुझे सब याद है पापा आप को ही मेरी याद नहीं आती तभी तो आप मेरी सुध नहीं लेते कभी |
पापा जब आप थे तब हमारे पास बहुत सी सुविधाएँ नही थीं पर आप का हाथ था हमारे सिर पर तो किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होती थी, आज हमारे पास सब कुछ हैं पर आप नही हैं तो कुछ भी नही है पापा कुछ भी नही ......
पहले तो आप मेरे सपने में आ जाते थे पर अब तो आप सपने में भी नहीं आते पापा | रोज सोच के सोती हूँ कि आज रात को सपने में जरूर मिलूँगी आप से पर सुबह उठ के निराश हो जाती हूँ, थोड़ी देर उदास हो कर बैठी रहती हूँ फिर अपने काम में लग जाती हूँ | आप तो मुझे बहुत प्यार करते थे पापा, फिर मुझे अकेली क्यूँ छोड़ गये आप ?
जब भी दुखी होती हूँ आप को याद कर के रोती हूँ कि अगर आप होते तो मैं अपने आप को यूँ अकेला और  कमजोर न महसूस करती | सारी दुनिया दुःख में भगवान को याद करती है पर मुझे आप याद आतें हैं पापा, जार-जार रोती हूँ आप को याद कर के | अब तो थक चुकी हूँ रो-रो कर, आप नहीं आएंगे मुझे पता है, अब तो एक ही रास्ता है आप से मिलने का ............................
                                               मुझे ही आना होगा आप के पास | वहीं आ कर आप से लिपट कर जी भर के रोऊँगी और अपने दिल की सारी बातें आप से कहूँगी जो अब तक किसी से नहीं कह पाई | कोई मुझे नहीं समझता पर आप मुझे अच्छी तरह समझते हैं पापा, मेरे दिल की हर बात समझते हैं आप, मुझे पता है | आप से मिल कर मुझे शान्ती मिलेगी और सभी दुखों से छुटकारा भी ........................
मैं ही आऊँगी पापा ..... मैं ही आऊँगी आप के पास .... मेरा इन्तजार कीजियेगा पापा .......

                                                 आप की लाडली
                                                   मीना

 

Friday, March 8, 2013

तुमसे मिलने का असर है




















कभी चाह थी बहुत दिल मे 
कि छू लूँ मैं भी बढ़ा के हाथ 
मिट्टी,हवा,पानी इन सब को 
पीछे छोड़ शून्य को 
जिंदगी को चाह थी भरपूर जीने की
थी ललक, कुछ भी कर गुजरने की 
जिंदगी एक किताब खूबसूरत थी 
जिसे पढ़ने की प्यार से तमन्ना थी 

फिर घेरा ऐसा बादलों ने निराशा के 
खुद से बातें करती,हंसती,रोती,बावली 
सी, ना चाह रही जीने की ना ललक 
कुछ करने की ...........................
बिखरी हुई सी ज़िंदगी,पन्ना-दर-पन्ना 
पलती गई यूँ ही, ज़िंदगी रेत की तरह 
हाथ से फिसलती गई

जाग उठी है अब फिर से वही पुरानी 
चाह जीने की,ललक कुछ करने की 
जिंदगी की खूबसूरत किताब को 
तमन्ना प्यार से पढ़ने की 
मिट्टी,हवा,पानी सब को पीछे छोड़ हाथ 
बढ़ा कर शून्य को छूने की , शायद ये 
तुमसे मिलने का असर है मुझ पर ||

चित्र -गूगल 

Monday, March 4, 2013

छाँव
















वसू हूँ मैं
मेरे ही अन्दर
से तो फूटे हैं
श्रृष्टि के अंकुर 
आँचल की 
ममता दे सींचा 
अपने आप में
जकड़ कर रक्खा 
ताकि वक्त 
की तेज आंधियाँ
उन्हें अपने साथ 
उड़ा ना ले जाएं
बढ़ते हुए 
निहारती रही 
पल-पल 
अब वो नन्हें 
से अंकुर 
विशाल वृक्ष 
बन चुके हैं 
और मैं बैठी हूँ 
उस वृक्ष की 
शीतल छाँव में 
आनन्दित 
मगन
अपने आप में ||

गाँव अब गाँव नही रहे











गाँव अब गाँव नही रहे
नहीं सुनाई देता  अब

चाची और बुआ के गीत
जो वो भोर में जांत पर
गेंहू पीसते हुए गातीं थी
 
नहीं सुनाई देता अब

माँ के  पायलों की
छम-छम जो ढेंका पर
धान कूटते हुए माँ के पैरों
से आती थी

 
नहीं
 सुनाई  देते  अब
बैलों के घंटी की आवाज
जो खेत जोतते समय
उनके गले से आती थी

किसी के घर जाने पर

अब नहीं मिलता वो
गुड़,भूजा और चिवड़ा
नहीं है अब वो आम,

अमरुद और जामुन के
पेड़ जहाँ हम बचपन

में ओल्हा-पाती खेलते थे

नहीं है अब वो मड़इयां

और खपरैल, मिट्टी के
चूल्हे पर बटुली में खदकता
अदहन भी नहीं अब 


नहीं दिखतीं अब बैल-गाड़ी पर

गीत गाती हुई मेला जाती औरतें
नहीं होता अब गन्ने की पेराई,
गेंहू की दंवाई और धान की ओसाई
नहीं दीखते अब डोली और कंहार

ना जाने कहाँ खो गया ये सब
मशीनों की होड़ और आधुनिकता
की दौड़ में गाँव अब गाँव नहीं रहे ||

चित्र-गूगल  

Monday, February 25, 2013

प्रश्न एक स्त्री का













हृदय में पीड़ा
के साथ एक
प्रश्न भी  है
कौन हूँ   ?
किस लिए हूँ ?
किस के लिए
हूँ मैं ............?  


 मीना पाठक

Sunday, February 24, 2013

सीख

















आज सुबह उठ कर घर का काम निपटाया बेटे को स्कूल भेज दिया | पतिदेव की तबियत कुछ ठीक नही तो वो अभी सो ही रहे थे |मैंने अपनी चाय ली और किचेन के दरवाजे पर ही बैठ गई कारण ये था कि आज आँगन में बहुत दिनों बाद कुछ गौरैया आयी थीं वो चहकते हुए इधर उधर फुदक रही थीं और मैं नही चाहती थी कि वो मेरी वजह से उड़ जाएँ | तो मैं वहीँ बैठ के उनको देखते हुएचाय पीने लगी | थोड़ी देर बाद गोरैया तो उड़ गईं पर मैं वहीं बैठी रही चुपचाप | ना जाने कैसे अचानक से पापा का ख्याल आ गया|
उनका ख्याल आते ही दो बूँद आँसू आँखों से निकल कर मेरे गालों पर लुढक आये और मैं अपने पापा के साथ अपने बचपन में चली गयी |सभी बच्चों मे कुछ ना कुछ बुरी आदत होती है मुझ मे भी थी | जब मैं कक्षा ६ में पढ़ती थी तो मुझे पैसे चुराने की बुरी आदत हो गई थी | मैं रोज तैयार हो के बैग पीठ पर लादती और पापा की पैंट की जेब में हाथ डाल कर जो भी फुटकर पैसे होते २५ , ५० या
१ रुपया निकल लेती और स्कूल चली जाती | उस समय पापा नहा रहे होते थे और मम्मी पूजा कर रही होती थीं इस लिए मेरा काम आसानी से हो जाता था | स्कूल में मैं उन पैसों से चूरन की मीठी गोलियाँ , कैथा , खट्टा - मीठा चूरन और इमली खरीदती और मजे से खाती |
कुछ दिनों तक तो ये सब बड़े आरम से चलता रहा | मजे की बात ये थी कि मुझे जरा भी एहसास नही था कि मैं कोई गलत काम कर रही हूँ ना ही मुझे ये लगता कि पापा कभी ये सब जान पायेंगें | कुछ दिनों तक ये सब बड़े आराम से चलता रहा |एक दिन ऐसे ही मैं तैयार हो कर स्कूल के लिए निकलने लगी | मम्मी पूजा कर रहीं थीं उनके ठीक पीछे दिवाल पर खूँटी थी और पापा की पैंट उसी पर टंगी थी रोज की तरह | पापा नहा रहे थे | मैंने धीरे से पापा की जेब में हाथ डाला कुछ सिक्के मेरी मुट्ठी में आ गये मैं हाथ बाहर निकलने ही वाली थी कि पापा बाथरूम से निकल के बहार आ गये थे |
मैं जहाँ खड़ी थी वहाँ से बाथरूम का दरवाजा साफ दिखाई देता था | तो अब मैं और पापा एक दूसरे के आमने सामने थे और हक्के - बक्के देख रहे थे एक दूसरे को |
मेरा एक हाथ पापा के पैंट की जेब में ही था | मेरी इतनी हिम्मत नही थी की मैं अपना हाथ जल्दी से बहार निकाल लूँ |फिर क्या ... पापा सारा माजरा समझ कर बोले -- अच्छा तो तुम ही हो जो मेरी जेब से पैसे गायब करती हो , रुको अभी बताता हूँ, इतनी गन्दी आदत तुम्हारे अन्दर कहा से आई , मैं भी कहूँ कि मेरी जेब के फुटकर पैसे कहाँ गायब हो जाते हैं , रोज परेशान होता हूँ की कहाँ खर्च दिए मैंने, (शायद पापा को बहुत जोर की गुस्सा आई थी मुझ पर ) पापा बड़बड़ाते जा रहे थे और कुछ इधर -उधर ढूंड भी रहे थे | मैं वही जड़ हो के खड़ी थी | अन्दर ही अन्दर थर - थर काँप रही थी | मम्मी भी सब समझ चुकी थीं |
बार-बार सिर घुमा के मुझे कड़ी नजरों से देख रही थीं | पापा को एक पतली सी छड़ी मिल गयी थी | मेरे पास आ कर उन्होंने मेरे उपर छड़ी उठाई और पूछा "फिर करोगी ऐसा".....
मैंने डर के मारे आँखे बंद कर ली और बोली -- "नही" और आँखे बंद किये किये ही छड़ी पड़ने का इन्तजार करने लगी |
थोड़ी देर बाद मैंने अपनी आँखे खोली तो देखा कि पापा उदास बैठे हुए हैं और छड़ी ज़मीन पर पड़ी है | अब मुझे लगा कि मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई है | पर उस समय पापा से कुछ बोलने की हिम्मत नही जुटा पा रही थी | चुप-चाप वही खड़ी रही , थोड़ी देर बाद पापा ही बोले ......-- आज के बाद मैं तुमसे बात नही करूँगा तुम ऐसा करोगी मुझे उम्मीद नही थी ..मुझे लगा कि पापा मुझे दो चार छड़ी मार देते तो ज्यादा अच्छा था | मैं उन से बोले बिना कैसे रह पाऊँगी | उस दिन स्कूल नही गई मैं |
किसी तरह दो दिन बीत गया | मुझे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था | पापा भी गुमसुम थे |मैंने पापा को दुःख पहुँचाया था | अपनी गलती का एहसास हो गया था मुझे | ऐसा लग रहा था कि पापा मुझे जी भर के डांट लेते,दो चार छड़ी भी लगा देते पर यूँ चुप ना रहते मुझसे |
ये सजा मेरे लिए असहनीय हो रही थी | इसी तरह तीसरा दिन भी बीत गया | पापा की चुप्पी मुझसे सहन नही हो रही थी |चौथे दिन मुझसे रहा नही गया | मैं डरते-डरते पापा के पास गई और बोली ..सॉरी ....
पापा ने मेरी तरफ देखा ,सॉरी पापा ... मैंने अपने दोनों कान पकड़ लिए और रोते हुए बोली ..
आगे से ऐसा कभी नही होगा पापा ....
पापा बोले -- प्रोमिस
मैंने कान पकड़े पकड़े ही सिर हिला कर हामी भर दी |
मेरे सिर हिलाते ही पापा ने मुझे अपने सीने से लगा लिया और प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए मुझे समझाने लगे .... "आगे से कभी ऐसी गलती मत करना,चोरी करना बहुत बुरी बात होती है,तुम्हे पैसे की जरुरत हो तो मुझसे मांगो" और भी ना जाने क्या क्या ...
पापा ने मुझे माफ़ कर दिया था | मेरे उपर से टनों बोझ उतर गया था | उनके सीने से लग के जिस सुकून की अनुभूति मुझे हुई थी वो शब्दों में बयान नही कर सकती |पापा की दी हुई सजा का असर मुझ पर ऐसा पड़ा कि आज तक मैंने वो गलती दोबारा नही दोहराई यहाँ तक कि पतिदेव की जेब में भी कभी हाथ नही डालती | उनकी जेब में गलती से कुछ नोट या सिक्के रह भी गये तो वो कपड़ो के साथ ही धुल जाते हैं | पता नही ये उनकी चुप्पी का असर है या मेरे उपर उठाई गई छड़ी का डर जो कभी पड़ी नही थी मुझे |
पापा का वो स्पर्श मुझे बहुत याद आ रहा है आज | आँसू रुकने का नाम नही ले रहे हैं | बहुत कोशिश के बाद भी अपनी हिचकियाँ नही रोक पायी और मेरे मुंह से निकल पड़ा "मिस्स यू पापा ....... अब भी मुझमे बहुत सी कमियाँ हैं" | काश कि एक बार फिर...................
रीना .........पतिदेव जाग गये थे और आवाज दे रहे थे मुझे | मैंने आँसू पोंछा फिर मुंह धोया | थोड़ा अपने को संयत किया तब तक
दोबारा आवाज आ गयी -- रीना...... अब पापा का साथ छूट चुका था | मैं पतिदेव के कमरे की तरफ बढ़ गई |

चित्र ..गूगल

लक्ष्मी मेरे घर की



















आरती की थाली 
लिए हाथों में 
जाने कब से 
निहार रही हूँ बाट ....
आएगी वह 
जब सिमटी लाल-जोड़े में ,
मेहँदी रचे हाथों से 
दरवाज़े पर लगा कर 
हाथों के थाप ,
ढरकाती हुई अन्न का कलश
आलता लगे पैरों से
निशान बनाती करेगी 
प्रवेश मेरी बहू अन्नपूर्णा, 
मेरे घर में 
बन के मेरे घर की लक्ष्मी ||

मैं पापा की लाडली



















मै अपने पापा 
की  लाडली 
उनकी ऊँगली 
पकड़   कर 
मचलती इठलाती 
थोड़ी ही दूर चली थी 
कि 
काल चक्र ने 
एक झटके से 
उनके हाथ से 
मेरी ऊँगली छुड़ा दी
अब मैं अकेली 
इस निर्जन 
बियावान जंगल 
में 
इधर - उधर 
भटकती   हूँ
एक सुरक्षा भरी 
छाँव  के  लिए 
जहाँ  बैठ  कर
मैं अपने आप को 
सुरक्षित महसूस 
करूँ 
जैसे अपने पापा 
की ऊँगली पकड़ कर 
अपने आप को 
सुरक्षित महसूस 
करती थी 
मैं 
अपने पापा की 
लाडली ।
  • मीना

Tuesday, February 5, 2013

ज़िंदगी




















जिन्दगी !!!
तुम इतनी बेजार क्यों ?
परेशान क्यों ?
 मैंने जब भी
 चाह  की
 तुझे गले से लगाने की
 झटक के दामन
 छुड़ा के  बइयां
 बेबस कर गयी मुझे
 और मेरी खुशियाँ
 बाट जोहती रही
  तुम्हारा
 जिन्दगी
 तुम कब से इतनी
निष्ठुर हो गयी  ||

चित्र - गूगल


मीना पाठक


Saturday, February 2, 2013

इन्तजार


















बहुत याद आता है मुझे
तुम्हारा मेरे
पीछे-पीछे घूमना
जरा भी मुझे
उदास देख कर
तुम्हारा परेशान
हो जाना ........
बहुत याद आता है मुझे
कुछ खो जाने पर
झट से ढूँढ
कर मुझे देना
और कहना
परेशां होना तुम्हारी
आदत है
सामान कही
भी रख के भूल
जाती हो'.......

फिर वो शुभ
घड़ी आयी
पगडण्डी से
होते हुए
डाकिये
के हाथ एक
चिट्ठी आयी
बेसब्री से इन्तजार था
जिसका हम को
फिर,
वो दिन भी आ
गया, जब तुम्हे
मुझसे दूर जाना था
तुम आगे और मैं
तुम्हारे पीछे - पीछे
जा रही थी उसी
पगडंडी पर
तुम्हे कुछ दूर छोड़ने,
मैंने अपने आँसुओं
के समन्दर को
बांध रखा था
शायद तुमने भी
पर, ज्यादा देर
नही रोक पाए हम दोनो
तुम पलट कर
लिपट गये मुझसे
कितनी देर रोते
रहे थे हम दोनो
न जाने तुम्हे
याद है कि नही पर,
बहुत याद आता है मुझे
और रुलाता है
वो तुम्हारा रोज मुझे
फोन करना और,
मेरी आवाज
सुनते ही रो पड़ना
बहुत याद आता है
फिर,
ना जाने क्या हुआ
किसकी नजर लगी
हमारे प्यार को
कि धीरे - धीरे तुम
बदल गये
मैंने कब तुम्हारी
खुशियाँ नही चाही
तुम्हारे लिए वो
सब किया जो तुमने चाहा
कहां मेरे प्यार में
कमी रह गयी जो
तुमने किसी और के
लिए मेरा प्यार
भुला दिया ....
आज भी तुम्हारे इंतज़ार में
रोज आती हूँ उस पगडंडी पर
तुम्हारी राह देखती हूँ और,
उदास हो कर वापस चली जाती हूँ
कल फिर वापस आने के लिए
इस आशा के साथ कि,
कभी तो तुम वापस आओगे
मेरे पास उसी पगडंडी पर
जहाँ तुम मुझे अकेला छोड़ गये थे ||

( चित्र - गूगल )


मीना पाठक







Thursday, January 17, 2013

शरारत



रात के ९ बजे हैं | डोर बेल बजता है | मैं बेटे को आवाज दे कर बोली - देखो पापा जी आ गये, गेट खोलो जा कर | बेटे ने दौड़ कर गेट खोल दिया | पतिदेव अन्दर आते हैं और गाड़ी खड़ी कर के सीधे रसोई की तरफ बढ़ते हैं | सब्जी का थैला रखते हुए मेरी तरफ देख कर घबरा जाते हैं |
अरे !! शालू क्या हो गया तुम्हे ? क्यों रो रही हो ? जल्दी से आ कर मेरे पास बैठ जाते हैं और मेरे आँसू पोछने लगते हैं | क्या हो गया शालू किसी ने कुछ कहा क्या ? मैंने तो तुम्हे कुछ कहा नही फिर क्या हुआ तुम्हे ? क्यों रो रही हो ?
बेटे को आवाज दे के पूछते हैं - मम्मी को किसी ने कुछ कहा क्या ? बेटा भी ना में सिर हिला देता है और मेरी तरफ देखने लगता है |
ये बोले - बोलती क्यों नही,क्या हुआ ? तब मैं पलकें झपकाते हुए बोली - क्या करूँ , जब भी मैं ये काम करती हूँ मुझे रोना आ जाता है | मैं अपने आँसू नही रोक पाती | 
क्यों करती हो वो काम जिससे तुम्हे रोना आता है | मेरे आँसू पोंछते हुए ये बोले |
मैं नही करुँगी तो कौन करेगा | घर के सारे काम मुझे ही करने होते हैं | कोई नौकर थोड़े ही लगवा रखा है आप ने | मैं थोड़ा गुस्से मे बोली |
अच्छा बाबा मैं ही कर दूँगा वो काम | आज के बाद तुम्हारी आँखों से एक भी आँसू नही गिरने चाहिए समझी | चलो अब मुस्कुरा दो | ये मुस्कुराते हुए बोले |
मैंने भी मुस्कुराते हुए अपना दोनो हाथ उनके ओर बढ़ा दिया और बोली - लो जी शुरू हो जाओ फिर देर किस बात की | मेरे एक हाथ में प्याज ओर दूसरे में चाकू देख कर ये सारा माजरा समझ गये |
पतिदेव मुस्कुराये और ये बोलते हुए रसोई से बाहर निकल गये कि "ये सब तुम्हारा काम है" | (प्याज काटने की वजह से मेरी आँखों से पानी गिर रहा था जिसे मेरे पतिदेव आँसू समझ बैठे थे ) तुम ही करो |
मैंने अपनी आँखें पोंछी और फिर जुट गई प्याज काटने में पर पतिदेव से ये शरारत कर के मैं बहुत खुश थी |



मीना पाठक 

Wednesday, January 16, 2013

पत्थर दिल

सुनों देव 

तुम पत्थर हो पत्थर | समझ रहें हो ना मैं क्या बोल रही हूँ | तभी तो तुम तक मेरी कोमल भावनाएं नहीं पहुँच पाईं आज तक | तुम्हे पूज-पूज के भगवान तो मैंने ही बनाया फिर भी तुम पत्थर के पत्थर ही रहे | सुना था कि तुम भोले हो थोड़े से प्रेम से ही प्रशन्न हो जाते हो पर मुझे तो वर्षों बीत गये तुम्हारी आराधना करते करते पर तुम वही के वही |

कभी - कभी तो लगता है कि मेरी पूजा सफल होने वाली है पर अगले ही पल तुम्हारी भृगुटी तन जाती है | तुम पत्थर हो और पत्थर ही रहोगे जीवन भर | इतने वर्षों में तुम्हारा हृदय परिवर्तन नहीं हुआ तो अब क्या होगा | अब तो मेरी भी उम्मीद जवाब दे रही है | शायद मेरी पूजा - अर्चना में ही कोई कमी रह गई जो तुम आज तक नही पिघले |

पर मेरी उन भावनाओं का क्या जो तुम तक आज तक नही पहुँची  पाईं | पर अब मैं भी कोशिश नही करुँगी कि तुम मेरी भावनाओं को समझो | वो मेरी हैं और मैं अपने पास ही सम्भाल के रक्खुंगी | क्यों कि पत्थर पर सिर पटक - पटक के मैंने अपना माथा और आत्मा दोनों लहुलूहान कर रखा है \

मैं इस दर्द के साथ अकेले ही जी लूँगी | तुम बैठे रहो अकेले पत्थर बन के | प्रणाम करती हूँ तुम्हे दूर से ही |

मीना पाठक 

Tuesday, January 1, 2013

संकल्प - मीना पाठक

मीना पाठक
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कड़े नियम कानून की मांग के साथ-साथ हम सब को अपने अन्दर भी झांकना होगा | हम अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नही मोड़ सकते | हम सभी को आत्ममन्थन करना होगा कि माँ- -बाप और शिक्षक होने के नाते हम बच्चों को क्या सिखा रहें हैं और अपने आप से एक वादा करना होगा हम सभी को कि आगे से हम ऐसा नही होने देंगें | इसी वादे के साथ नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ आप सभी को ..

शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...