Tuesday, December 9, 2014

यात्रा अंतर्मन की


सुरो आज अपने आप को रुई से भी हल्का महसूस कर रही है, एक अजीब सी खुशी और ऊर्जा का एहसास हो रहा है उसे जैसे अपनी जिंदगी की मंजिल पा गई हो | वो उड़ रही है इधर से उधर, अब उस पर कोई रोक-टोक या पाबंदी नही, वो अब कहीं भी आ जा सकती है, उड़-उड़ कर वो अपने घर मे मंडरा रही है ऐसा करने मे उसे बहुत आनंद आ रहा है |
थोड़ी देर बाद उसने देखा कि उसके पतिदेव उसे हिला कर जागा रहे हैं पर उसके शरीर मे कोई हलचल नही हो रही और अचानक ही घर मे कोहराम मच गया | बहुएं उसे जगाने का प्रयास कर रहीं हैं पर सुरो की नींद नही खुल रही | धीरे-धीरे घर मे भीड़ जुटने लगी, सुरो अपनी बहुओं को समझा रही है पर वो जैसे उनकी बात ही नहीं सुन पा रहीं |
पतिदेव को भी कह रही पर वो भी उसकी बात नही सुन रहे | सुरो परेशान है, वो तो सब को देख रही हैं, सुन रही है पर उनकी बात कोई नहीं सुन पा रहा है | क्या हो गया है सब को ? मेरा शरीर क्यूँ पड़ा है इस तरह ? वो कुछ भी समझ नही पा रही है | धीरे धीरे उनकी सब सहेलियां भी आ चुकी है, सब रो रहीं हैं | घर के बाहर पुरुषों की भीड़ लग गई और अन्दर महिलाओं की |
सुरो का शरीर बेड से उतार कर बहार जमीन पर एक चादर बिछा कर लिटा दिया गया है सभी वही बैठ गये
उसने देखा की उसकी सबसे प्यारी सखी रानी फूट फूट कर रो रही है | सब का रोना देख कर सुरो का अंतर्मन वेदना से दहल रहा था और वो किसी को भी समझाने मे असमर्थ थी | वो ये सोच कर परेशान थी कि उनका शरीर इस तरह से शांत क्यूँ है वो तो यहीं हैं फिर भी...........
पतिदेव भी रो-रो कर बेकल हो रहे हैं | सभी उन्हें समझाने मे लगे हैं, पर उनका रोना बंद नही हो रहा है | महिलाएं एक दूसरे से चर्चा कर रहीं हैं, सभी को उसके द्वारा किये गये कोई ना कोई कार्य याद आ रहा है, उसके हंसमुख, मिलनसार स्वभाव की चर्चा सभी कर रहीं हैं | धीरे-धीरे दोपहर हो गई कोई कब तक बैठा रहेगा, अपनी-अपनी संवेदनाएं दे कर सभी लोग  घर चले गये अब सिर्फ घर के ही लोग बचे हैं | सुरो के शरीर पास घूपबत्ती जला दी गई है, बहुए रो-रो कर बेदम हो कर वहीं बैठीं हैं | सुरो का बहुओं से बहुत लगाव था इन्हें रोता हुआ देख कर वो बहुत दुखी हो रही हैं | उन्होने ने देखा कि पतिदेव किसी से कह रहे हैं--
कल जायेगी, बेटों के आने के बाद |
शाम होते ही कुछ लोग गाड़ी से बर्फ की बड़ी सी सिल्ली ले कर आए हैं | अब सुरो का शरीर बर्फ के सख्त गद्दे पर लिटा दिया गया है |
धीरे-धीरे सभी रिश्तेदार पहुँच रहे हैं, हर एक के आने पर एक बार फिर से हृदयविदारक दृश्य देख रही है सुरो | रात मे सास ससुर रिश्तेदारों से बात कर रहे हैं बहुएं और पतिदेव निढाल हैं | आज पहली बार अपने सास-ससुर के मुंह से अपनी तारीफ़ सुन कर बहुत गदगद है सुरो | वो तो दुनिया की सबसे अच्छी बहू थी अपने सास-ससुर की निगाह मे | बीच-बीच मे पतिदेव भी उसके त्याग और संघर्ष को बता रहे हैं |
जीवन के इस मोड़ पर क्यूँ छोड़ कर चली गई ये कह कर रो पड़ते हैं |
सुरो सोचने लगी, ये लोग जो आज बोल रहे हैं वो सच है या ये लोग जो कल तक बोलते थे वो सच था ??
सुरो कराह उठी इतने दोहरे व्यक्तित्व के कैसे हो सकते हैं ये लोग ?
वो शायद अब जीवित नही हैं, कई बार सुना था कि मरने के बाद आत्मा शारीर के आस-पास ही मंडराती रहती है, तो क्या वो ....... ????
अब सुरो समझ गई थी कि उनकी आत्मा शरीर छोड़ चुकी है | रातभर वो वहीं अपने बहुओं के पास बैठी रही और अपनी तारीफ़ सुनती रही पाति और सास ससुर के मुख से, पर हर तारीफ़ के बोल उसकी आत्मा कचोट रहे थे | अपने बेटे को सीने से लगाये बैठे थे वे लोग, कभी यही लोग शरीर भीतर मेरी आत्मा कुचलते रहे और आज भी वही कर रहे हैं | सुरो तो कब का मर जाना चाहती थी पर अपने बच्चों के लिए जीती रही और अब, जब अपने पोते-पोतियों के साथ हँसना चाहती थी, खेलना चाहती थी, तब आत्मा ने शरीर छोड़ दिया, ना तब कुछ वश मे था और ना ही कुछ आज उसके वश मे है | पति को रोते हुए देख कर कभी तो उसे हँसी आ रही थी तो कभी उसका दिल नफरत से भर रहा था | इसी आदमी ने जानवरों से भी बद्तर वर्ताव किया था, मेरे शरीर को कितनी बार काले नीले रंगों से भर दिया था, उसकी पीड़ा आज भी महसूस करती हूँ और आज सब को दिखाने के लिए रोना पीटना ...... हुंह ,,,
नफरत है तुम से बुदबुदाई सुरो | पर उनकी आवाज कोई नही सुन पाया |
सुबह हो गई है सुरो ने देखा कि सामने वाली भाभी जग मे चाय ले कर आयीं हैं उन्होंने सब को जबरजस्ती चाय पिलाई और थोड़ी देर बैठ कर चली गयीं | करीब आधे घंटे बाद एक कार आ कर रुकी, दरवाजा खुला और बेटे दौड़ कर माँ के शरीर से लिपट गये एक बार फिर से दृष्य हृदयविदारक हो गया ..रोने की आवाज सुन कर फिर से भीड़ जुटने लगी, कई लोगों ने बेटों को मेरे शरीर से अलग किया, पर वो किसी से भी सम्भल नहीं पा रहे थे, अपने-अपने पति को यूँ रोते देख कर बहुएं भी फिर से बिलख कर रो पड़ीं | सुरो तड़प रही थी बेटों को हृदय से लगाने के लिए पर कुछ भी नहीं कर पा रही थी, बेटों को बिलखता देख हर एक के आँख मे आँसू हैं,
अब जाने की तैयारी हो रही है बाहर कुछ लोग बांस का बिछौना तैयार कर रहे है....रानी बहुओं को समझती जा रही है और बहुएं अपनी सासू माँ को विदा करने के लिए तैयार कर रहीं हैं |
 ऐसा लग रहा है जैसे सुरो सज-धज कर सो रही हो ..लाल जरीवाली साड़ी जो बड़े बेटे ने अपनी पहली तनख्वाह पर खरीद कर दी थी सुरो को, उसे याद आ रहा है, उस दिन वो कितनी खुश हुई थी बेटे से इतनी महँगी साड़ी पा कर पर पहनने मे हिचकती थी क्यों कि साड़ी सुर्ख लाल रंग की थी इस लिए उसे सम्भाल कर रख दी थी | वही साड़ी बहुओं ने पहना दी थी, लाल बिन्दी, लाल चूड़ियाँ, महावर नये बिछुए सब पहनने के बाद सिन्दूर लगाने के लिए पतिदेव को लाया गया उनके कुछ मित्रों ने उन्हें सम्भाल रखा था | बहू ने सिन्होरा खोल कर आगे बढ़ा दिया पतिदेव ने दुबारा सुरो की मांग भर दी और सुरो सोचने लगी कि ये सिन्दूर किसने बनाया ? ये एक चुटकी सिन्दूर किसी के जीवन का फैसला कर देता है, फैसला अच्छा हुआ तो जीवन सफल और गलत हुआ तो जीवन को बोझ की तरह ढोना पड़ता है अपने ही कन्धों पर |
अचनक कुछ लोगों ने झट से सुरो के शरीर को उठा कर बांस के बिछौने पर लिटा दिया, एक बहू दौड़ कर भीतर से चश्मा उठा लाई....सुरो को चश्मा लगा कर बोली --
मम्मी चश्मे के बिना नहीं रह पातीं सभी लोग फूट फूट कर रो पड़े ..हिचकियों और रोने-बिलखने की आवाज से वातावरण ग़मगीन हो गया था..झट से दोनों बेटों और पतिदेव ने बांस का बिछौना उठा लिया और चल पड़े, सब कुछ पीछे रह गया |
कुछ महिलाएँ बतिया रहीं थीं
कितनी भागमान थी सुरो, पति और बेटों के कंधे पर चढ़ कर विदा हो रही है |
सुरो सब कुछ देख-सुन रही है | उसे जहाँ ले जाया गया वहाँ भी एक लकड़ी की सेज तैयार है जिस पर उसे लिटा दिया गया है ऊपर से लकड़ियाँ रख कर पतिदेव के हाथ से उनमे आग लगा दी गई लकडियाँ धूं धूं कर जल उठीं, बेटे माँ को जलता देख तड़प उठे, सुरो कराह उठी ..आह्ह !!! आखिर इन्होने ने मुझे राख मे तब्दील कर ही दिया, मेरा पूरा जीवन
होम हो गया !


अचानक गर्मी से पूरा शरीर तपने लगा रोम छिद्रों से पसीने की बूंदे रिसने लगीं और सुरो की आँख खुल गई | लाइट चली गई थी पंखा बंद होने की वजह से नींद टूट गई, सुरो भौचक्की हो अपने आस-पास देख रही थी, समझने की कोशिश कर रही थी कि वो स्वप्न देख रही थी या सच मे वो जीवित नही है | वो अपने अन्दर कुछ कमजोरी सी महसूस कर रही थी, उसने  बहू को आवाज दे कर पानी माँगा ये देखने के लिए जी वो जिन्दा है भी कि नही | बहू पानी ले आई, सुरो ने बहू को अपने सीने से लगा लिया बहू चौंक पड़ी क्या हुआ मम्मी जी ? सुरो की आँखों से आँसू निकल पड़े अपनी अंतिम यात्रा से वापस आ रही हूँ | बहू उनका मुंह देखने लगी, सुरो ने आँसू आँचल में समेट लिया | 

मीना पाठक
कानपुर-उत्तर प्रदेश    

No comments:

Post a Comment

शापित

                           माँ का घर , यानी कि मायका! मायके जाने की खुशी ही अलग होती है। अपने परिवार के साथ-साथ बचपन के दोस्तों के साथ मिलन...